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इच्चाइ पयंपेउं, अप्पेउं तस्स विविह- रयणाणि । कुमरं अणुनवेडं, सा सहसा जाइ निय - ठाणे ॥ ८०१ ॥ धणदायगाणि विस - घायगाणि रयणाणि रोगहरणाणि । दिनाणि ती कुमरो, गिण्हेउं जाइ नियनयरे ॥८०२॥ निय दइयं चिय नवरं, अवरं पि जयं करेइ नीरोयं । कुमरो गुणीण अहवा, सव्वं सव्वस्स सामन्नं ॥८०३॥ सरियाण जलं वेसाण जुव्वणं, तरुवराण फल- निवहो । सप्पुरिसेहिं वित्तं, सामन्नं सयल - लोयस्स ॥८०४|| विन्नाय वइयरेणं, रत्ना तेणा वि कुमरजणएण । आहविय तस्स रज्जं दिनं, दिक्खा तओ गहिया || ८०५ || सो पत्तसाहुवाओ, कय अणुराओ नियम्मि नियरज्जं । परिहरिय जीवघाओ, पालइ परिकलियमज्जाओ ॥८०६ ॥ अप्पस्स वि माहप्पं, नियमस्स वियाणिऊण सव्वाणि । गिण्हइ गिहिव्वयाई, अविचल - चित्तो सुगुरुपासे ॥८०७ ॥ नियनियमे परिवालिय, सो पत्तो अच्चुयम्मि कप्पम्म । चविउं अक्खयय - सुक्खं, मुक्खं लहिही विदेहमि ॥८०८ || तेणत्तणविरइवयं, कयं जहा तेण तह विहेयव्वं । अवरेण वि छेएणं सीसच्छेए वि संपत्तो ॥ ८०९ ॥ इति तृतीयव्रते वज्रबाहुकथानकं समाप्तम् ॥गा.३७१६॥ परदारविरमणवये अणंतकित्तिकुमरस्स कहा इयलोय-पारलोइय-सुहाणि कित्तिं तहा समीहंतो । हुज्जा सदारतुट्ठो, परदारं वा विवज्जिज्जा ॥ ८१० ॥ परदारं तह वेसं वज्जेइ नरो सदारसंतुट्ठो । परनरसंगहियं चिय वज्जइ दुइओ न उण वेसं १८११ ॥ अन्नं पि कामसुक्खं कामयमाणं दुरंत - निरएसु । वच्चति अकामा वि जं भणियं पवरसिर्द्धते ॥ ८१२ ॥
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
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