________________
वज्जबाहुकुमारकथा
||७८८||
कुमरो वि आह नाहं वित्तमदत्तं कया वि गिण्हेमि । जं तइयव्वय-नियमो सुगुरु- समीवे मए गहि गच्छेउ लच्छि-जीवीय - देह - कलत्ताइ - वत्थु - वित्थारो | निय नियमं अह यं, पाणच्चाए वि भंजेमि ॥७८९ ॥ जइ पुण एयं रयणं, मुहुत्तमित्तं पि मज्झ अप्पेसि जं मग्गियस्स दाणं, करेमि तो तुह न संदेहो || ७९०॥ जक्खो जंपइ निययं, सीसं जच्छेसु जेण तुट्ठमणो । गंतूण तुज्झ भज्जं, करेमि सज्जं खणद्धेण ॥७९१॥ आमंति पयंपतो, कुमरो सिर-कमल- छेयण-निमित्तं । धारालं निय छुरियं, तुरियं आयड्ढए सहसा ||७९२ ।। एत्थंतरम्मि पयडा, होऊणं वाणमंतरी सा वि । जंपइ कुमार ! साहसमवियार करेसि किं एयं ? ||७९३॥ किं मूढ ! मुहा मरिहिसि, भिक्खायर - वयण - -पडु- - पवंचेहिं । किं देसि नियं सीसं, सत्थे वि विमोहिओ बाढं ॥ ७९४ || छुरियाए इमाइ च्चिय, इमस्स जक्खस्स छिंदिउं सवणं । रयणं गिण्हसु जम्हा, वसुंधरा वीर - परिभुज्जा ॥ ७९५॥ सो आह नियपइण्णा, निव्वाहे होउ सीसछेउं वि । सिरछेयणाउ अहियं, मन्ने पडिवन-विच्छेयं ॥ ७९६ ॥ इय जंपिय जाव इमो, लुणेइ सीसं नियाय छुरियाए । तो ती जंपियमिणं, हे सुपुरिस ! 'साहु साहु ति ॥७९७|| तुज्झ भवंतरदइया, हरिणच्छी नाम जा तए चत्ता ।
मरिऊणं सा अहयं, वंतर - देवित्तणं पत्ता ॥७९८ ॥ नियम - ब्स - निमित्तं, मए उवाएहिं विविह - भंगीहिं । मच्छर-परव्वसाए, कुमार ! जं खेइओ विविहं ॥ ७९९ ॥ सव्वं पि तं खमिज्जसु, गरुया न कुणंति दीहरं रोसं । को वा कोवावसरो, निययजणे सावराहे वि ॥८०० ॥
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
२८३
www.jainelibrary.org