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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
भूमीतलम्मि के वि हु, अप्फालइ के वि निहणइ कुमरो । अन्नना घाएण, के वि ह उच्छालए गयणे ॥७७५।। दिसि दिसि वेयालेसं, पलायमाणेसु जंपए कुमरो । रे पडिहारवराए किमि व्व मारावसे किमिमे ॥७७६॥ सच्चं चिय जइ सूरो, मरण-भयं नत्थि सह मए तत्तो । निसियतरं तरवारिं, करियकरे जुज्झ सयमेव ॥७७७।। तं कन्नमूलसूलायमाणवयणं निसामिउं एसो । सह कुमरेण ब्भिट्ठो करकय-धाराल-करवालो ॥७७८।। निक्किव-किवाण-पाणी, सपाण (नि)रविक्ख मह इमे जाव । जज्झंति तावतेसिं, तट्टा वारं गओ खग्गा ॥७७९॥ कमरेण पट्ठिदेसे, निहओ मट्ठीइ तह इमो जह से । धूली वि हु न वि दिट्ठा, पलायमाणस्स वेगेण ॥७८०।। कुमरो वि भवणमज्झे, पविसंतो तेण जक्खराएण । भणिओ कहेस सपरिस ! आगमणपओयणं निययं ॥७८१ ।। नियवामसवणरयणं, देसु त्ति पयंपिए कुमारेण । सो आह जगते वि हु, न इमं अप्पेमि जीवंतो ॥७८२॥ जइ पुण अविदिनं पि हु, बला वि गिण्हेसु तो इमं गिण्हे । किं मूढ ! को वि जीविय सव्वस्सं अप्पए वत्थं ।।७८३।। सो आह मज्झ भज्जा, अज्जं रोगेहिं गाढसंगहिया । तत्तो एयं रयणं, करुणं काऊण अप्पेसु ॥७८४।। अह न वि अप्पसि निययं, रयणं तत्तो इमस्स अप्पेसु । पहाण-जलं तेणावि हु, वाहि-विमुक्का इमा होही ॥७८५।। वज्जरइ जक्खराओ, तज्झ कडुंब पि मरउ किं मज्झ ? । सम्मुहनिरक्खणं पि हु, न देमि निययाण वत्थूणं ॥७८६ ।। जइ पण बला वि गिण्हसि, सह मह जीएण तो इमं गिण्ह । किं कोउगमिह अहवा हणंति जं दुब्बलं बलिया ॥७८७॥
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