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________________ २७४ सिरिपउमप्पहसामिचरियं वारिय-दुरिय-समूहाण, वारिसेणाइतित्थनाहाण । तत्थ नियच्छइ पुरओ, पिच्छणयं कमलपत्तच्छी ॥६७२ ।। सोहम्मीसाणसूरेसराण, पच्चक्खमित्थ पिच्छणए । वायइ कलास कुसलो, कलावई तंबरुं वीणं ॥६७३ ।। हारिकरणंगहारं, मणहरणं विविहचारुचारीहिं । पयडइ ललियं नट्ट, रंभा रंभाभिरामोरू ॥६७४।। सा खयरेसरधूया, रंभारूवं निरूविउं सहसा । ऊहापोह काउं, जाईसरणं समणुपत्ता ॥६७५॥ जाणइ सुरिंद-सामाणियस्स तियसस्स कणयबाहुस्स । दइया पुव्वभवे हं, अहेसि नामेण कणयवई ॥६७६।। पिच्छणयंते पच्छइ,एसा विगलंत-नित्त-सयवत्ता । पियसहि !ममं भवंतर-नियय-सहिं मुणस कणयवई ॥६७७॥ तं सुणिय ससंरंभा, रंभा परिरंभिऊण तं कन्नं । जंपइ संपइ ट्ठिासि दिट्ठिया सुयणु ! दिलिहिं ॥६७८॥ तुह विरहदुहं दुसहं, जं जायं मज्झ तस्स पुण इण्डिं । वत्ता वि कन्नमूलं, निसुणिय मित्ता जणइ सूलं ॥६७९॥ निय दइय-तियस-समरण-तक्खण-संजाय-राय-मय-चित्ता । कन्ना ! संपइ साहस, मज्झ पिओ कत्थ उववन्नो ? ॥६८०॥ ओहिवाणवियाणिय, परमत्था वयइ तो इमं रंभा ।। सो कणयबाहतियसो, सावत्थीए निवो जाओ ॥६८१॥ तत्तो तिलत्तमा सा, रंभं आपच्छिऊण जिण-भवणे । वंदिय नियनयरं पइ, चलिया परिवार-संजुत्ता ॥६८२।। निय जणणि-जणयमापच्छिऊण सामंत-मंति-संजुत्ता । हे चक्काउह' नरवर ! सयंवरा तुज्झ सा एइ ॥६८३।। तुज्झ भवंतरदइयाइ तीए कन्नाइ किरणवेगो हं । निय-वइयर-जाणावण-कज्जे संपेसिओ एत्थ ॥६८४।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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