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वज्जबाहुकुमारकथा
निहारि - नारि - विगलंत - नित्त- जल- सित्त- कित्ति-कतारा । अप्पडिचक्को चक्कि व्व, तत्थ 'चक्काउहो राया ॥६५९॥ अवरोहर - मणि- सेहर - मणि व्व नवकमल-पत्त-पिहु-लच्छी । लच्छी लच्छिहरस्स, व हरिणच्छी' नाम से भज्जा ॥ ६६० ॥ तं जियसुवण्णवण्णं, रमणिं पावित्तु चारु - तारुण्णं । नियचित्ते नरनाहो, मन्नइ मयरंकमवि रंकं ॥६६१ ॥ एसा विरूववंतं, विजयजयंतं लहित्तु तं तं । तिलमवि तिलुत्तमाविय मलाइ सोहग्ग - सव्वस्सं ॥६६२॥ अत्थाणसहासीणे, नरनाहे अवरवासरे तत्थ । एगं दिव्वविमाणं, मणिमय - पंचालिया कलियं ॥६६३ ॥ अनिल-चलंद्धय-किंकिणिरण - ज्झणाराव - पूरिय- दियंतं । उद्धमुह- लो- लोयण-पिच्छिज्जंतं समणुपत्तं ॥ ६६४॥ तम्मज्झाओ वियसिय-पंकय - उयराउ रायहंसो व्व । निहरीय नरो एगो, नरवर - पायंतियं पत्तो ||६६५|| सो राय-पाय-पंकय-पणाम - पुव्वं वरासणासीणो । आगमणकज्जमवणीसरेण पुट्ठो पयंपेइ ||६६६ ॥ अत्थि गिरी वेयड्ढो, वियड्ढविज्जाहरोह - कयवासो । रमणत्थलाउ वासो वि व, नहलच्छीए पब्भट्ठे ॥६६७॥ तस्स सिहरम्मि सेहर - समाणमसमाणरिद्धि- पब्भारं । अत्थि पुरं सुपसिद्धं, रहनेउर-चक्कवालं ति ॥६६८॥ राया वि रायगोयर - पाविय - दुर्द्दत - सत्तु - संभारो । भुयदंड - धरिय - धरणी - भारो रहसेहरो नाम || ६६९॥ नो तस्स पियाए, रहंगसेणाए कुच्छिसरहंसा । निज्जिय-तिलोय - रमणी, तिलुत्तमा नाम वरकन्ना ॥६७०॥ सा नियसहीहिं सहिया, चलिया अवरम्मि वासरे मुद्धा नंदीसरम्मि दीवे, जगप्पईवाण नमणत्थं ॥ ६७१॥
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