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तो कड्ढह कट्ठाई, मा हु विलंब करेह इह अत्थे । रे किर- सारियाए ! तुमए भव्वेण होयव्वं ॥ ४९१ ॥ हं जे लवंग ! तुमए अच्चेयव्वा सया वि जिणपडिमा । पियसहि ! पियंगुलइए !असोयलइया तुहं दिना ||४९२॥ इच्चाइ जंपिरी सा,सहसा उट्ठेइ कुमरपासाओ । कुमरो वि भणइ सणियं, हा अंब ! तए किमारद्धं ? ॥४९३ ॥ सुक्खासमारूढा, दीणाण होइ दाणतल्लिच्छा । पउरेहि सदुक्खेहिं, निरिक्खिया निग्गया नयरा ॥४९४॥ रायं सुबुद्धिमंती, जंपइ संपइ तुमं पि तत्थेव । गच्छह जइ पुण एसा, तुह दंसणओ नियत्तेहिं ||४९५|| इय भणिय महाराओ, नीओ मंतीहि पिउवणे तत्थ । पिच्छइ जलंतजलणं, किंकरकयखाइयं भीमं ॥४९६॥ अह लीलावइदेवी, उच्चसरेण भणइ हे असुरा ! I लोया य लोयपाला ! सुणंतु वित्तियं मज्झ ॥ ४९७॥ मह पाणपिओ पुत्तो, मह मरणेणं इमेण विहिएण । जम्मंतरम्मि सुहिओ हवेउ, जइ अत्थि धम्म-फलं ॥४९८॥ मंतीहिं इमा भणिया, किं कत्थ वि देवि ! अप्पघाएण । थेवो वि होइ धम्मो, किं तं मूढा सिणेहेण ? ॥४९९॥ अन्ना विहियाए, इत्थीहच्चाए होइ जइ धम्मो । तो तुह अप्पवणं, होही धम्मो इमेणा वि ॥ ५०० ॥ भणियं च
भाविय जिणवयणाणं, ममत्तरहियाण नत्थि ह विसेसो । अप्पाणम्मि परम्मि य, तो वज्जे पीडमुभवो वि ॥ ५०१ ॥ सा भणइ मंती अहयं, सव्वं जाणेमि किंतु पढमम्मि । पडिया जलंत-जलणे, नियपुत्त - दुहं न पिच्छिस्सं ॥५०२॥ मंतीहि निवो भणिओ, जइ एसा कह वि देव ! तुह इत्थीग्गहेण गहिया, मा धम्मजडो तुमं हो ||५०३ ॥
देवी ।
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
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