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________________ २५८ सिरिपउमप्पहसामिचरियं कुड्डुतरिया देवी जणणी कुमरस्स सणिय भणियम्मि । सुणिऊण तत्थ पत्ता कुमरं पइ जंपए एवं ॥४६५॥ दुक्खं गिण्हेमि तुम जीयं दावेमि निययजीवेण । मह कहसु अभिप्पायं करिहेमि तुरियं तुह कज्जं ॥४६६॥ लज्जा सज्जा कुमरे मणोरहं कहइ तस्स वरमित्तो। सा भणइ एत्तिए वि हु इत्तिय मित्ता किमिह चिंता ॥४६७॥ तह राया भणियव्वो जह तुमए कनयाय वीवाहं । कारइ अप्पवसे वि हु अत्थे को नाम मणखेओ ॥४६८॥ परिवालसु पंचदिणे मा को वि हु खेयराण मज्झम्मि । एही तब्भिच्चो वा पच्छा कन्ना तुह च्चेव ॥४६९॥ उट्ठसु करेसु भोयण-सिणाण-पमुहाणि देह-किच्चाणि । निच्चं निच्चिंतेण होयव्वं मज्झ वयणेणं ॥४७०।। इय आसासिय कुमरं गच्छइ देवी नियम्मि भवणम्मि। कमरो वि ह विसत्थो मणम्मि मणयं कणइ तोसं ॥४७१ ।। दिनपंचगपज्जते गया इमा राय-पायपासम्मि। उल्लवइ देवकुमरो होही निरुओ न संदेहो ॥४७२ ।। जइ एयं वरकन्नं वियरसि कुमरस्स परिणयनिमित्तं । को दोस च्चिय तेसं मएस वि गएस खेयरेस ॥४७३।। देविं सकोवचित्तो राया जंपेइ एस जइ मूढो । बालो कामगहिल्लो तुम पि ता किंतु मूढा सि ? ॥४७४।। बहवरिसकया वासो अवरपिसाओ वि कहवि न ह सज्जो। तो भवकोडिविलग्गो कामपिसाओ कहं सज्झो ॥४७५॥ अने नरा गहिल्ला पाणच्चाए चयति गहिलतं। कामपिसल्ल-गहिल्लो न मयइ जम्मंतरेणा वि ॥४७६।। जंपइ जं वा तं वा नच्चइ गाएइ पडइ पाएसु। जइ एसो न गहिल्लो किं तस्ससिरे हवइ सिंगं ॥४७७।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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