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सिरिपउमप्पहसामिचरियं पिच्छह अइविच्छिण्णं पत्ताणत्थं धणस्सिरी एसा । नियवंसवंसमुत्तियमणिसारिच्छं विणा पुत्तं ॥३३५॥ मा जीवउ घडियं पि हु घडंत अइतिक्खदुक्खपत्थारी । नारी नियकुलनहयलससंकसरिसं विणा पुत्तं ॥३३६॥ अहमवि धणसिरिसरिसा जइ न जइस्सं कहिं पि पुत्तत्थे । ता किं करेमि किंवा पुच्छेमि उवायमणवायं ॥३३७॥ एवं वियप्पमालाजले पडियाए तीए देवीए । चउजामा वि तिजामा जामसहस्सोवमा जाया ॥३३८॥ अह राया संपत्तो काउं उच्छंगसंगयं देविं । तं उवलालइ सुंदरि ! इत्तियमित्ता किमिह चिंता ॥३३९॥ किं असिवं तुह देहे गेहे वा तुज्झ अहव परिवारो । अवसो अहवा अहयं दिळं वा कुसुमिणं किं चि ॥३४०॥ अविरलगलंतनित्ता देवी जंपेइ न मह किंपि दुहं । एत्तियमित्तं दुमइ जं सुय-रहिया अहं नाह ! ॥३४१ ।। इय नीसाणसिला वि हु पाहणकप्पा वि मं सुहावेइ । जीए पुत्तपसिद्धी संपत्ता लोयमज्झम्मि ॥३४२ ॥ भन्नइ रना अइसाहु साहु ! जं पुत्तकज्जउज्जुत्ता । जाया सचिंतहियया सच्चं मह होसि दयइ त्ति ॥३४३।। इत्तियमित्तकालं चिंता मह आसि केवलस्सेव । संपइ तुज्झ वि चिंता संजाया तो इमं लट्ठं ॥३४४॥ तो उठेसु लहुं चिय करेसु भोयण-सिणाणपमुहाणि संपइ तहा जइस्सं वंछिय सिद्धी जहा हवइ ॥३४५।। इच्चाइ जंपिऊणं राया अत्थाणमंडवे पत्तो । देवी वि भुवणगुरुणो जिणस्स पुएइ पयकमलं ॥३४६॥ जाए पओससमए राया लीलावईय संजुत्तो । निवसियसियनेवच्छो महग्घमणिमुत्तियाहरणो ॥३४७॥
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