SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० इय जंपिरो दुरप्पा तं बालं लुलुयतारतरलच्छिं । पावो पावपएसा संलग्गो रक्खसो गिलिउं ॥२३३॥ कुमरेण वि नियखग्गं उग्गामिय जाव आहओ गाढं । ता तस्स देहलग्गं खग्गं दो खंडयं जायं ॥२३४॥ कुमरो वि महाबाहु झत्ति निजुद्धेण जुज्झए जाव । ता तेण वि वालेउं सहसा बाहाउ सो बद्धो || २३५|| हा सवियासियदंतुरदंतो जंपेइ रक्खसो एसो । भो कुमार ! तुझ कनं मुएसि जइ देसि मह अनं ॥२३६॥ तुह सुहसुहिया संखा रहिया नयरम्मि संति दासीओ । तासिं दासिं घोरं एगं मह देसु छुहियस्स ॥ २३७॥ तह मह पडिमं काउं पूयसु निच्चं पि तोऽहमप्पिस्सं । तुह दइयं तह कज्जे सुमरियमित्तो समेइस्सं ॥ २३८॥ तं पइ जंप कुमरो नाहं जिणनाहपूयणं मुत्तुं । अवरसुरपूयणाई करेमि नियपाणचाए वि ॥२३९॥ तह निरयगमणमूलं, न करेमि न कारवेमि जीववहं । तुज्झ न वि जुत्तमेयं, भो रक्खस ! जाणमाणस्स ॥ २४० ॥ इत्थंतरम्मि कन्ना, रक्खसमाया वि जंपए एवं । सिरिपउमप्पहसामिचरियं हा नाह ! हा नाह ! रक्खसु रक्खसगहियं नियं दयं ॥ २४९ ॥ विरह-हुयासण-जालामालाहिंतो कुमार ! तुमए हं । जह रक्खिया तहेव य रक्खसु रक्खसमुहाहिंतो ॥ २४२ ॥ इय विलवंति रक्खो, ससंकबिंबं व सजलजलवाहो । तं गिलइ जाव कंठं पुण भणइ कुमारमुद्दिसिउं ॥ २४३ ॥ भो मूढ ! तुज्झ तत्तं एत्तिय मित्ते गएवि साहेमि । जइ मह न देसि दासिं तो एगं छगलियं देसु ॥ २४४॥ जइ पुण न मज्झ वयणं, करिहिसि तो हं गिलित्तु तुह दइयं । पच्छा तुमं गिलिस्सं मा भणिहिसि जं न कहियंति ॥ २४५ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy