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संगामसूरकहा
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मुणि-मुह-पंकयनिग्गय-वाणी-मयरंद-पाण-दुल्ललिओ । सो पत्त साहुवाओ, गिहिधम्म पालए सम्मं ॥१९४॥ अह अनया य पत्तो, जलनिहि-ववहारगहियबहुदव्वो । नामेण मित्तसारो, कुमारमित्तो तहिं नयरे ॥१९५॥ सो राय-पाय-दरिसण-पुव्वं पत्ता कुमारपासाए । पणओ पसायपुव्वं निवेसिओ निवसमीवम्मि ॥१९६॥ पुट्ठो कहापसंगे जलनिहिदीवेसु किं पि अच्छेरं । दिठं सुयं व तुमए अच्छेरजुओ जओ जलही ॥१९७|| विनवइ सो वि सामिय ! निसामियं जं जणेइ रणरणयं । तं तुज्झ कोउहल्लं, कहेमि निसुणेसु एगमणो ॥१९८॥ गयणयणमिलिय-कल्लोलमज्झवियसंतमच्छदुप्पिच्छो । लच्छीकडक्खसच्छहलसंतडिंडीरपरिल्लो ॥१९९॥ हरिहियए सरि-अहरारूणविद्दुमवल्लिगुंफिया लोओ । जलही-अदिट्ठपारो, दिट्ठो संसार-सारिच्छो ॥२००॥ लंघति तं पि वहणाणि मज्झ पुण्णोह पिल्लियाणि व्वे । तडमुक्कविविहदीवतराणि पत्ताणि दरम्मि ॥२०१।। अह अभंलिहसिहरो एगो सिहरी पलोइडं तत्थ । पुण महण कए खित्तो तियसेहिं मंदरगिरि व्व ॥२०२॥ सिहरस्स तस्स सिहरे साहासयरुद्धनहयलविहाओ । अंतरियतरणिताओ कप्पतरू पिच्छिओ एगो ॥२०३॥ सालासु तस्स दोलिरमणिमयपल्लंकअंकमारूढा । पंकयकेसरगोरी जियरंभारूवसव्वस्सा ॥२०४॥ नियदेहदित्तिलहरीकयदिसिसिंदूरपूरसीमंता । सीमंतिणीसु तिलया तिलयचउद्दसय-आभारणा ॥२०५॥ आभारणमऊहेहिं दिसिदिसि विलसंतएहि रेहती । रेहंतपत्तजुव्वणविहिया रत्तियवयार व्व ॥२०६॥
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