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________________ २३२ सिरिपउमप्पहसामिचरियं नरनाहपसाएणं मणिनिम्मियभवणसिहरमारूढो । वारविलयाहि सद्धिं सच्छंदं विलसए एसो ॥१३४॥ अह अनया य रना एसो संभासिऊण एगंते । भणिओ ममं वियाणसि सुपुरिस ! परिचयविसेसेण ॥१३५॥ सो आह नाह ! तुमयं नाहं चिय केवलो वियाणेमि । किंतु हरिणकनिम्मलकित्तिभरं जाणए सव्वो ॥१३६॥ परिचयविसेसपिसणे परमत्थं नेव कहवि बुज्झेमि । गरुयाण महवचित्तं को नाम वियाणए तुच्छो ? ॥१३७॥ नयणाणंदो राया जंपइ हे मित्त ! एत्थ जम्मे वि । धम्मो य अहम्मो वा मणवंछिय दायगो कहसु ॥१३८॥ सो सुमरिय नियकम्मो संकिय हियओ वि चिंतए चित्ते । नूणं सो मह वेरी मारिस्सइ संपयं एसो ॥१३९॥ पुणरवि रवा भणिओ मा हु वियप्पं करेसु हे मित्त ! । तुह पडिबोहनिमित्तं सुमरणमेयं मए विहियं ॥१४०॥ अज्जवि न किंपि नठं धम्म पडिवज्ज सुद्धचित्तेण । इयलोय-पारलोइय-सुहाणि जइ महसि सव्वाणि ॥१४१ ।। एसो राया एसं मनइ आयारसंवरं तइया । काऊण नियय भुवणे गच्छइ वीसज्जिओ रना ॥१४२।। अलिउल-कज्जल-कुवलय-सिहिगलसमतिमिर-निब्भर-निसाए । देसंतरम्मि एसो वच्चइ नियकम्मसंतत्थो ॥१४३॥ भुवणं पि अप्पसरिसं पायं पिच्छंति तुच्छबुद्धीओ । संखं पि पीयवनं कामलनयणो नियच्छेइ ॥१४४॥ सर-गिरि-काणण-देसंतरेसु विविहेसु निययपुरिसेहिं । सव्वत्थ गवेसावइ राया सोयाउरो मित्तं ॥१४५॥ नियमित्तमपिच्छंतो पच्छा निच्छइ य वत्थुपरमत्थो । कारइ अमारिघोसं, निम्मावइ बिंबलक्खाणि ॥१४६॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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