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भाषा में पद्मप्रभचरित्र की रचना कर अपनी साहित्यिक सर्वतोमुखी प्रतिभा का परिचय दिया है । इस महाकवि के जन्मस्थान, माता-पिता और उनके जीवन पर प्रकाश डालनेवाली अन्य कोई सामग्री उपलब्ध नहीं होती । किन्तु इन्होंने ग्रन्थके अन्त में जो प्रशस्ति है उसमें अपनी गुरुपरम्परा के साथ अपना भी अल्प परिचय दिया हे वह इस प्रकार है
प्राचीन कोटीक गणकी उच्च नागर विद्याधर शाखा से जालिहरगच्छ और कासग्रह गच्छ दोनों एक साथ निकले । प्रस्तुत आ. देवसूरि जालिहर गच्छ के बालचन्द्र के शिष्य गुणभद्र शिष्य सर्वानन्द (जिन्होंने पार्श्वनाथ चरित्र की रचना की थी ) के शिष्य धर्मघोष सूरि के शिष्य थे। इन्हों ने देवेन्द्रसूरि से तर्क और हरिभद्रसूरि से सिद्धान्तों का गहन अध्ययन किया था । अपनी गुरु परम्परा से प्राप्त ज्ञान से इन्होंने संवत १२५४ में भीमदेव के राज्यकाल में मार्गशीर्ष दसमी के दिन रेवती नक्षत्र के योग में वढवाण नगर में पज्जुण्ण श्रेष्ठी की वसति में रहकर श्रमणोपासक विद्दयलक्खण की प्रार्थना से इस चरित की रचना की। इसके अतिरिक्त इन्हों ने अपने ज्ञानप्रदाता आ. हरिभद्रसूरि का भी जीवन चरित्र लिखा था ।
प्रस्तावना के प्रारम्भ में उल्लिखित प्रतियों के आधार से प्रस्तुत ग्रन्थ का संशोधन सम्पादन किया गया है। संशोधन में एवं प्रेस के कारण तथा प्रमादवश कुछ क्षतियाँ रह गई है। विद्वानों से प्रार्थना है कि ऐसी क्षतियों की सूचना देने की कृपा करें जिन का उपयोग यथावसर अवश्य ही किया जायगा ।
रूपेन्द्रकुमार पगारिया
Jain Education International 2010_04
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