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ओसहिवलयं एयं, अमोहवयणेण मह गिण्ह ॥ १०७ || एयस्स पिंडदाणा सत्थोवहया विरोहनिया वि । आजम्ममंधला वि हु पुणन वा जायए दिट्ठी ॥ १०८ ॥ ओसहिमाहप्पेणं तह तुह अन्नो वि को वि उवयारा । होहि त्ति जंपिऊणं तिरोहिया झत्ति वणदेवी ॥१०९ ॥ नियदंसणसंपुडेणं निम्मलनयणो तहिं जाओ ॥ ११० ॥ उव्वरियमोसहिं तं घित्तुं मग्गमि वच्च तत्तो । पत्तो य हत्थणाउरगोउरदारम्मि सो कमसो ॥ १११ ॥ तत्थ पडहमुहेणं सुणेइ आघोसणं जहा रनो । जम्मंधा सुयाए जो को वि हु सुद्धजाइ जुओ ॥ ११२ ॥ उग्घाडइ नयणजुयं राया तं चैव कन्नयं तस्स । दाउण अद्धरज्जं पसायपुव्वं पयच्छेइ ॥११३॥ सो पडहो भमडंतो चउक्क-तिय- चच्चराइठाणेसु । बहुहि विदिवसेहिं पुव्वं केणा वि न हु छित्तो ॥ ११४ ॥ पत्रायरमंतिसुओ तद्दिणपत्तो वि छिवइ तं पडहं । नीओ य रायपासे रायाइट्ठेहि पुरिसेहिं ॥ ११५ ॥ विन्नवइ सो विसामि इय तुह कन्नं सज्जनयणसंपन्नं । सज्जं करेमि जइ मह उप्पायिसि पच्चयं कमवि ॥ ११६ ॥ वुड्ढेणममच्चेणं एगेणं तस्स सवणमूलम्मि । सणियं भणियं राया सो मयरद्धओ नाम ॥११७॥ निरवच्चो निच्चं पि हु पुव्विं पूएइ विविहसुरनिवहं । यच्छइ सुपत्तदाणं गच्छइ वेयालभूमीसु ॥११८॥ कालक्मेण रनो जम्मंधा पवररूपरूवसंपन्ना । कंचणमाला नामा कन्ना एगा समुप्पन्ना ॥ ११९ ॥ तो सुपुरिस नरवणो इमाए धूयाए पाणभूयाए । उग्घाडिऊण नयणे लहेसि मणवंछियं सव्वं ॥ १२० ॥
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
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