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________________ पण्णायरमंतिपुत्तकहा धम्मविरुद्धे वयणे लवमिव न करेमि वीसा ॥६९॥ सुणसु कहाणयमेगं कत्थ वि गामम्मि को वि पाविट्ठो । अह वुड्ढकामकुंढो निवसइ दुट्ठाण दिट्ठतो ॥७०॥ सो गामबहिप से पत्तलनग्गोह - रुक्खमूलम्मि । उच्चारं कुणइ सया विरुद्धसीलो महापावो ॥ ७१ ॥ जंगलगिद्धा गिद्धा आहिंडियविविहं पिउवणुद्दे । निच्चं वसति तत्थ य निसाइनग्गोहसिहरम्मि ॥७२॥ उव्वेइया य सव्वे आगच्छंतेण तत्थ कुंढेणं । निग्गोहसिरे एगो गिद्धो चिट्ठइ तहिं लुक्को ॥७३॥ तत्थागयस्स तस्स य पक्खनिहायं करितु अइभीमं । गिद्ध कोवसमिद्धो उच्चारं कुणइ सीसम्मि ॥७४॥ तं अनिमित्तं चित्ते, चिंतंतो मंदिरम्मि गच्छंतो । गहिओ महाजरेणं, जमदूणं वसो कुंढो ॥ ७५ ॥ कलिऊण मरणसमयं, नियपुत्ते भणइ मज्झ जइ सव्वं । भत्तिपरामहदेहं, मयस्स तो घोरगरलेण ॥७६॥ उवलिंपिऊण तत्तो, मुंचिज्जह वडतरुस्स मूलम्मि । इह भणिय मओ पावो, पुत्तेहिं वि तं तहा विहियं ॥७७॥ मिलिया निसाइगिद्धा भक्खता तं च वुड्ढगिद्धेण । भणिया करेह मा मा मए वि एयम्मि वीसासं ॥७८॥ तह विहु लुद्धा गिद्धा समकालं तस्स देहसंलग्गा । निय पाणेहिं वि चत्ता पढियं केणावि तं दठ्ठे ॥७९॥ उक्तं च न विश्वसे ग्रामकूटस्य जीवितोऽपि मृतस्य वा । एक गृध्रापराधेन सर्वे गृध्राः निपातिताः ॥८०॥ तो गामकुंढवयणे, अहयं न करेमि कह वि वीसासं । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only २२७ www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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