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________________ २२० सिरिपउमप्पहसामिचरियं चउविह सुराण कोडी, परिवारे सद्द-रूव-गंधाइ । अणुकूल च्चिय विसयावसंतपमुहाउदू चेव ॥७०४।। इय इगुत्तीस संखा सुरजणिया मेलिया य चउतीसा । चउतीस अइसय जुओ विहरइ पउमप्पहो तइया ॥७०५॥ मगहा रायगिहाइसु मालव-उज्जेणि-अंग-चंपासु । देसपुरेसुं सामी पडिबोहइ भवियजणनिवहं ॥७०६॥ विहिया विहारलीला तेण सयं जत्थ पुरिससीहेण । मोहाइ सिंधुरेहिं सहस त्ति पलाइयं तत्थ ॥७०७।। . तेण वयणामएणं संहारिय-विसय-वासणा-तण्हं । बहवे सुहिया विहिया दुविहं दाऊणं वर-धम्मं ॥७०८॥ देसेसं विहरंतो विविहेसु अणेयसव्वसत्ताणं । दिक्खं पयच्छमाणो गिहीण धम्म विहरंतो ॥७०९॥ कमसो सुरट्ठठदेसे सामी सत्तुंजयम्मि सेलम्मि । पत्तो मुणिगणजुत्तो गह-गण-रिक्खेहिं चंदु व्व ॥७१०॥ सो सिहरी पढमं पि हु पेसइ परिवारमज्झयारम्मि । नियमभिंतरमनिलं मिउ-सुरहिं अभिमुहं पहुणो ॥७११॥ सो सत्तुंजयसेलासु निवडंत निज्झरसयाणं । गंभीरविरावेहिं दुंदुहिघोसं च निम्मवइ ॥७१२।। सिहरत्थपढमजिणपहुमंदिरविलसंतवेजयंतीहिं । पउमप्पहजिणदंसणहिट्ठो नच्चइ व सो सिहरी ॥७१३॥ पंचण्ह जिणवराणं समइक्कंताण समवसरणेहिं । सिहराइं पवित्ताई जस्स न किं सो महातित्थं ॥७१४॥ तित्थाण पवरतित्थं जो किर पढमेण तित्थनाहेण । सिरिउभसेणं पुरओ परूविओ भरहखित्तम्मि ॥७१५।। जिणअंतरेसु के वि हु कयावि भवभावभावणापवरा । संजायजाइसरणा उप्पाडिय केवलंनाणं ॥७१६।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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