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________________ २१६ सिरिपउमप्पहसामिचरियं पव्वज्जा खलु गरुया, वज्जिय सावज्ज-वावारा ॥६५३॥ कंचणमणिसोवाणं,थंभसहस्सूसियं सुवण्णतलं । जो कारेइ जिणहरं, तओ वि तव-संजमो अहिओ ॥६५४|| सव्वरयणामएहिं, विभूसियं जिणवरेहिं महिवलियं । जो कारेइ समग्गं, तओ वि चरणं महड्ढिययं ॥६५५॥ चेइय-कुल-गण-संघे, आयरियाणं च पवयणसुएण । सव्वेसु वि तेण कयं, तव-संजममुज्जमंतेण ॥६५६।। इय केवलिवयणेणं, मणम्मि आसासिओ महीनाहो । रज्जम्मि विमलवाहणतणयं अहिसिंचए निययं ॥६५७॥ नियसहि अणरेहा, सहिओ गिण्हइ तस्स पयमूले । राया दिक्खं कज्जो, न विलंबो धम्म-कज्जेसु ॥६५८॥ मुणिणा दिना दिक्खा, नियनिय ठाणम्मि जाइ पुरलोओ । हरिवाहणरायरिसी, तत्तो एवं विचिंतेइ ॥६५९।। अज्जं वा कल्लं वा जुगंतरे वा अवस्स मरियव्वं । कयसुकयसमूहाणं किं नाम भयंतओ मरणे ॥६६०॥ अहयं चिय इय धनो जस्स महं विसयपंकपडियस्स । उद्धरणकए पत्तो पूरंदरो केवली भयवं ॥६६१।। इय चिंतिय सो भावइ भावणनिवहं अणिच्चया पमुहं । चरियाणि जिणिंदाणं तहेव धीराण पुरिसाण ॥६६२॥ अह तस्स समुप्पण्णा दुव्विसहा सीसवेयणा घोरा । अकय चिगिच्छो तत्तो तत्तं एवं विचिंतेइ ॥६६३।। रज्जं पालंतेणं बहूणि पावाणि जीवविहियणि । तुमए तत्तो सम्म सहेसु सव्वाणि दुक्खाणि ।।६६४॥ उक्तं चपुनरपि सहनीयो दूःखपातस्तवायं नहि भवति विनाशः कर्मणां संचितानां । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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