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संहरियसिद्धपुत्तरुवो अवरो वि विहिय नियो । जाओ नरवरमाणसकुमुयवयणानंदचंदसमो ||६२८।। मन्नइ मणम्मि राया अहो महं चेव दिव्वमणुकूलं । जं एक्कवासरे च्चिय दइया मित्ता य परिमिलिया ||६२९|| गरुओ विपुरिसयारो हवेइ विहलो विहिम्मि पडिकूले । अणुकूले तम्मि पुणो अचिंतिया होइ फलसिद्धी ॥६३० ॥ देवी अणंगलेहा नरनाहो तहय दो वि वरमित्ता । अनोन्नं वृत्तंतं कहंति सव्वे वि सव्वं पि ॥ ६३१ ॥ राया रंजियचित्तो, कन्ना जुयलेण मित्तजुयलस्स । कारइ पाणिग्गहणं, जोग्गो जुग्गाण संजोगो ||६३२॥ समयंतरम्मि देसतराणि दाऊण निययमित्ताण | निरवज्जं रज्जं सुहं, तत्थ सुहं भुंजए राया ||६३३ ॥ हरिवाहणजणएणं, जाणियतत्तेण इंददत्तेण । आहविय नियंरज्जं दत्तं पुत्तस्स सयमेव ॥ ६३४|| उद्दाम-महुर-संद्दस्स, अज्जसमुद्दस्स पायमूलम्मि । पडिवज्जिय पव्वज्जं, सो महिनाहो सिवं पत्तो ||६३५ ॥ हरिवाहणराया उण, अज्जसमुद्दस्स चेव पयमूले । दइयामित्तेहिं समं, गिहत्थधम्मं पवज्जेइ ||६३६॥ रहजत्ततित्थजत्ता, कारइ अट्ठाहिया महामहिमं । बिंबाणि पट्ठावर, मारि जीवाण वारेइ ॥ ६३७॥ वरिसाण सहस्सेसुं, गएसु नयरम्मि तत्थ संपत्तो । सुरखेयरपरियरिओ, पुरंदरो केवली भयवं ॥ ६३८ ॥ हरिवाहणनरनाहो, नियदंसणहरियदुरियपब्भारं । सपरिवारो गंतु, मुणिनाहं नमइ भत्ती || ६३९ ॥ उचियट्ठाणणिविट्ठे, नरनाहे भूय - भावि - भावाणं । जाणतो परमत्थं, एवं भयवं कहइ तत्तं ॥ ६४० ॥
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
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