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हरिवाहणनिवकहा
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ते बिंति हे. नरेसर ! चिंता तुमए न तीए कायव्वा । इह अत्थे अम्हेहिं पयट्टियव्वं सयं चेव ॥५८९।। एवं चुण्णं गिण्हसु इमेण तिलयं करेसु भालयले । सोहग्गसिरो रयणं हवेसि जेणं खणद्धेण ॥५९०॥ सो परदारियतिलओ कयतिलओ तेण दिव्वचत्रेण । गच्छइ तिस्सा पासे सहसा सिंगारतारंगो ॥५९१ ।। एत्तो य तेहि एसा अंजणजोगेण अंजियखेहिं । सुद्धंते गंतुणं कय संकेया कया आसि ॥५९२॥ तत्तो इमा पयंपइ अज्ज महीनाह ! पवरतित्थम्मि । अट्ठावयम्मि सेले वंदिय देवे जिमिस्समहं ॥५९३॥ तमकालवुट्ठिसरिसिं तिस्सावयणं निसामिउं राया । हरिसस्स विसायस्स वि समकालं गोयरे पत्तो ।।५९४॥ चिंतइ य धुवं एसा तिलयपभावेण अज्ज अणुकूला । कह पुण इमीए वयणं अज्ज पमाणं विहेयव्वं ॥५९५।। इय चिंतिय नरवइणा ताणं आहविय साहियं कज्जं । ते जंपति नरेसर ! एत्तियमित्ता किमिह चिंता ॥५९६॥ अज्जं वा कल्लं वा जइया राया पयंपए तइया । अट्ठावयम्मि सेले सा नेयव्वा न संदेहो ॥५९७।। किं पुण कज्जं एसा संपइ अट्ठावयम्मि वच्चेइ । अहवा नायं एसा तिलयपभावा वसे जाया ॥५९८॥ सेलम्मि तम्मि सामिय, आरामा संति निच्चमभिरामा । तो तुमए सह एसा, सिच्छाए रमिस्सए तत्थ ॥५९९।। सो कामग्गह-गहिओ, तह त्ति सव्वं मणम्मि चितंतो । जंपइ दिव्वविमाणं, अज्जेव करेह जइ सक्का ॥६००॥ तव्वयणतुल्लसमयं, रयणमयं सालभंजिया कलियं । तेहिं पडाया लडह, हारिविमाणं विणिम्मवियं ॥६०१।।
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