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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
करकलियसिंगियाहिं अणप्परायाहिवारविलयाहिं । सो राया सिप्पंतो बंधुररोमंकुरे वहइ ॥४९८॥ सो वि पडिसिंचणत्थं, सिंगियहत्थो सहेइ मयण व्व । परिहरिय कसमबाणो, कयवारुण-बाण-संधाणो ।।४९९।। जल-केलि-पसत्ताणं, मिहणाणं अंगरायकलसजला ।। रेवा वि सहइ तइया, निवम्मि नवरायरत्त व्व ॥५००॥ सा वि हु अणंगलेहा, निब्भरनेहा पिएण जलकेलिं । बहुनम्म-रम्म-पिम्मा, निम्मावइ नम्मया-सलिले ॥५०१ ।। तत्तो तामियवच्छो, पत्तो तीरम्मि सो वि नरनाहो । अंतेउरिहिं सहिओ, करिणीहिं जूहनाहो व्व ॥५०२।। मुत्तूणगलिर-बिंदु ससोयमिववत्थ-जुयलयं पुव्वं । परिहइ उज्जल-महिगय-हरिसं पिव नव्व-वत्थ-जयं ॥५०३।। सो वि ह अणंगलेहा, निब्भरनेहा पिएण जलकेलिं । काऊण नित्रयाए, तीरे पत्ता सही सहिया ॥५० ४।। निब्भर-सलिल-भरेणं सव्वाण वि तीमियाणि वत्थाणि । मुत्तूण नीरतीरे, गिण्हइ अवराणि वत्थाणि ॥५०५॥ इत्तो य सुहम-कोमल-अमल्ल-दोगल्ल-निम्मियं रम्मं । सोणमणि-किरण-लहरी-कब्बरियं सलिलपडिहत्थं ॥५०६॥ दिव्वं कंचुय-रयणं, अणंगलेहाए दिव्व-जोगेण । नव-जंगल-भंतीए, हत्थं मच्छेण परिगलियं ।।५०७॥ तो झ त्ति सत्ति-तोमर-कराल-करवाल-दित्त-कुंताई । गहिऊण रायसुहडा पहाविया मच्छ-मग्गेण ॥५०८॥ ताण सहडाण तारय-निवहाणं तह य पिच्छराणं पि । सो मच्छो तम्मि जले, सहस त्ति अदंसणं पत्तो ॥५०९॥ नाउं वइयरमेयं, अणंगलेहा वि चिंतए चित्ते । नूनममंगलमेयं, कंचुयहरणं महं होही ॥५१०॥
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