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________________ हरिवाहणनिवकहा २०३ इय तव्वयणं सोउं, उब्भड-भिउडी-कराल-भालयलो । करवाल-कलिय-हत्थो लग्गो कमरस्स समरम्मि ॥४८५।। तो खेयर-नर-वीरा करंति समरं सुराण मणहरणं । कमरेण भग्ग-खग्गो, संजमिओ तयण सो खयरो ॥४८६॥ सो निज्जिओ पयंपइ तमए हे वीर ! धीर-चरिएहिं । रूवेण मणो मह तह अणंगलेहाए अवहरियं ॥४८७।। ता विवाहस एयं करेस रज्ज इमम्मि नयरम्मि । इय जंपिय वेयड्ढे कमराणनाए सो जाइ ॥४८८॥ कुमरो वि नवोढाए अणंगलेहाए कंचयं दिव्वं । अप्पित्त तत्थ नयरे निरवज्ज पालए रज्जं ।।४८९।। तह वसियं तं नयरं, ताणं संपन-पन-माहप्पा । अलया वि अलिय-कित्ती कित्तिज्जइ तस्स जह परओ ॥४९०॥ अभिरामे आरामे, सरियातीरेस सेलसिहरेस । सच्छंदं सह तीए, विलसइ हरिवाहणो राया ।।४९१ ।। तत्थऽत्थि पुरासण्णे, महल्ल-कल्लोल-मिलियगयणयला । रेवासरीया सर-बह-सेवा मणहरणतीरं ता ॥४९२॥ जलदारिय-तड-पयडिय-धणसमुदयकय-कयत्थजणनिवहा । कत्थ वि एसा सरिया, पडिहाइ सामि सारिच्छा ॥४९३।। नियडतडरूढपायवसमूलनिम्मूलणेक्क वावारा । कत्थ वि अंतो कलसा दज्जणसामि व्व पडिहाइ ॥४९४।। कलहंसकामिणिणं कलकोलाहलमिसेण अणवरयं । जलदेवयाण एसा महुरालावं व निम्मवइ ।।४९५॥ चक्कायमिहुणसिहिणालहरी-लायन-पन्न चंगंगा । वियसिय-कवलय-नित्ता सा रेहइ तरुणि-रमणि व्व ॥४९६।। राया तिस्सा तीरे उभओ पासंतमिलिय वा नीरे । सुद्धंत-निवह-सहिओ, जलकेलिं कुणइ सिच्छाए ।।४९७।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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