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________________ १९० नीसेस दुक्खकारणवारणमसमाणपारणं तुमए । पहुणा कारितेणं, वसीकया मुक्खलच्छी वि ॥३२०॥ इय जंपिय तियसेसुं, गएसु विहवेणतेण सव्वेण । पहुपयपवित्तठाणे, पीढं निम्मावए एसो ॥ ३२१ ॥ तेहि वि नवसमणेहिं केहिं वि गंतूण कस्स वि गिम्मि । तत्थेव बंभथलए, पारणयं निम्मियं विहिणा ॥ ३२२ ॥ नियदंसणेण दिंतो, जणाणमाणंद - अमयवुट्ठिं व । जयनाहो मगहाइस आयरियदेसेसु विहरिंसु ॥ ३२३ ॥ गुरुगिरिसिहरसएसुं ससलिलकूलं कसाणकुलेसुं । दुसह सहेइ सीयं, काउसग्गे ठिओ नाहो || ३२४ ॥ नवनलिणिपत्तकोमलमंगं चंगं पि सिद्धिसुहकामी । सामी अणविक्खतो बावीस - परीसहे सहइ || ३२५ || रयणी जाणुणा जं दिणसमए भाणुणा य संज्झासु । दो वि किसाणा तह नीयं सीयं दरिद्देहिं ॥ ३२६॥ उक्तं च रात्रौ जानुदिवा भानुः कृशानुः संध्ययोर्द्वयोः । लोके नीतमितिशीतं जानुभानुकृशानुभिः ॥३२७॥ तं सीयं दुहवियं, कम्मसमूहं सया वि जगनाहो । कंपाविंतो वि सहइ, लब्भइ कट्ठेहिं खलु इट्ठे ॥३२८॥ जम्मि वसंते पत्ते, तरु वि सहस त्ति हुंति सवियारा । तत्थ विवियाररहिओ, तिव्वतवं तवइ जयनाहो ॥ ३२९ ॥ परपुट्ठलट्ठकलयलतक्खणसंहरियमाणिणीमाणे । सिंगाररहस्स मए, महुसमए पगरिसं पत्ते ||३३० ॥ जह पहिया नियदइया, मिलणत्थं इंति नियगिहं तह सो । केवलसिरिमिलणत्थं, विहरित नियत्तिउं भयवं ॥३३१ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only सिरिपउमप्पहसामिचरियं www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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