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धम्मदेसणा
उदयं खलु दिणमणिणो कहंति विहगा न कुव्वंति ॥२५५॥ लोयंतियतियसेसुं सट्ठाणगएसु भुवणलोयाणं । दाणं वियरिकामं णित्त परमप्पहं नाहं ॥ २५६ ॥ सक्केण समाइट्ठो वेसमणो जंभगेहि तियसेहिं । पूरावइ पहुनयरिं धणकण - मणि - कणय - नियरेहिं ॥ २५७॥ नट्ठा वि य भट्ठा वि य मएहि किविणेहि जे परिचत्ता । ते निहिणो उवणीया दाणारंभम्मि जयगुरुणो ॥ २५८॥ जिंभिय उवणीएहिं नियकोसगएहिं तह य जयनाहो । कारइ धणेहि गोपुर-गोमुहठाणेसु उक्कुरुडे ॥२५९॥ आइसइ निए पुरिसे जो जं मग्गेइ तस्स तं तत्थं । वियरह पमाणमिह खलु मग्गण - माणसं चेय ॥ २६०॥ घोसिज्जइ वरवरिया, चउक्क - चच्चर - तिगाइठाणे । मणिरयणकंचणाई मग्गह जं मग्गियं देमो ॥२६१ ॥ नियपाणिपंकएणं निययनिओगीहिं तह य भुवणपहु 1 हरि-करी-दण-कंचण - भूसण - रयणाइयं देइ ॥२६२॥ एगम्म दिने एगा हिरण्णकोडी य अट्ठलक्खा य । उदयाउ ताव दाणं, दिज्जइ मज्झं दिणं जाव ॥ २६३ ॥ संवच्छरम्मि दिण्णा, कोडिसया तिन्निवरहिरण्णस्स । अट्ठासीई कोडी, असीइ लक्खाहिया चेव || २६४|| कणस्स इमा संखा सेसमसंखं ति बिंति वरमुणिणो । अहवा जहन्नमाणं कणयस्स वि एयमुद्दिट्ठे ॥२६५॥ जयति पढमधम्मो त्ति पवरमेयं ति सव्व चाए वि। माहि कारणेहिं सामी दाणं पयट्टेइ || २६६॥ जंगम-कप्पतरु विव भुवणस्स वि वंछियाणि वियरंतो । दारिदं ति जणाणं, नामं पि हु नासए नाही || २६७॥ इत्थंतरम्मि आसणकंपेण वियाणिऊण सुरनाहा ।
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