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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
अमरावइनयरि-पहु, तिनाय नवि मनए जह सा ॥१९२।। जयनाहे संजाए, जाओ हरिसो निवस्स सो को वि । तं जइ जाणइ सो च्चिय, अहवा पउमप्पहो नाहो ॥१९३॥ अह बारसम्मि दियहे, पणरवि मेलित्त सयण-जणनिवहं । वत्थाभरण-विलेपण-सक्कारं तेसिं काऊण ॥१९४॥ धरनरनाहो जंपइ, इमम्मि कुमरम्मि उयरमवयरिए । मज्झ सुसीमादेवी, दोहलमेयारिसं धरइ ।।१९५॥ वियसिय-पंकय-सयणे, अहं सुविस्सामि संपयं रम्मे । इय मह पत्तो एसो, हवेउ पउमप्पहो नाम ॥१९६॥ अह वड्ढइ जयनाहो, नियरवपरिहवियसजल-जलवाहो । हरिसंचारियमणहर-अंगठ्ठ-गएण अमएण ॥१९७॥ अंकण-कीलण-मंडण-सिणाणपमुहाहिं पंच धाईहिं । लालियंतो वड्ढइ समइहिं समण-धम्मो व्व ।।१९८॥ मलयाचलम्मि चंदणतरु व्व नंदणवणम्मि पारूढो । हरियंदणु व्व वठ्ठइ कमेण सो तत्थ जयनाहो ॥१९९।। सारिणि-सलिल-सरिच्छो, बहुजणउच्छंग-आलवालेस । संचरमाणो सामी, उल्लासइ हरिसतरुनियरं ॥२०॥ सो जत्थ जत्थ सामी, परिसक्कइ धरनराहिव-गिहम्मि । वियसंति तत्थ तत्थ य, संचारिमरत्त-पउमाणि ॥२०१॥ तिहि नाणेहिं समग्गो, असुर-सर-खयर-किन्नर-नरेहिं । कीलाहि विचित्ताहिं, सो कीलइ बालकालम्मि ॥२०२॥ के वि हुं असुरकुमारा, धरंति-वहु-पायघायपरितिसिया । पयपुरओ विलुठंता, कंदुग-रूवं सयं चेव ॥२०३॥ जय-गुरु-कर-पंकेरुह-तिसिया तियसा हवंति ते के वि । कंदुग-ताडण-जट्ठी-रूवा, पहु कीलणावसरे ॥२०४॥ जयपहुणा आरोहण-लुद्धा, के वि हु हवंति वरतुरया ।
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