SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्मवण्णणं १७९ संकामियतो सक्को, पहणो अंगठ्ठयम्मि वरममयं । नंदीसरम्मि गंतुं, करेमि अट्ठाहिया महिमं ॥१८०॥ चउसट्ठी सरनाहा, सरगण-परिवारिया स-रिद्धीए । काऊणं अट्ठाहिय-महिमं वच्चंति नियट्ठाणे ॥१८१ ।। जामिणि-विरामसमए, निई परिहरिय दासि-संदोहो । तं दिव्वगंधवासियदियंतमवलोइउं भवणं ।।१८२।। धरनरनाहसमीवे, गंतुं अहमहमिगाए अन्नोन्नं । जंपति जयसु सामिय ! परमब्भुदएण वड्ढेसु ॥१८३॥ देवी देव ! पसूया, इमाइ रयणीए भवणकयहरिसं । तणयं नियदित्तीए, उज्जोइय दसदिसाचक्कं ॥१८४।। सोऊण इमं राया, बंधर-रोमंचदंतरसरीरो । नवमेहजलसमाहय-कयंब-कुसुमोवमो जाओ ।।१८५॥ मउडं वज्जिय सव्वं, नियंगसिंगारमन्नमवि दाउं । वद्धावइ लोयाणं, अंकं निक्कंदए राया ॥१८६॥ बद्धावयणे रन्ना, दिनो हरिसेण तित्तिओ विहवो । जो हवइ वयंताण वि, तेसिं जा सत्तसंताणा ॥१८७॥ कोसंबीए परीए वद्धावणयं करेइ नरनाहो । । नीसेस-लोयलोषण-कयहरिसं अमय-वुट्ठिं व ॥१८८॥ अविय - विविह पविसंतनच्चंतवर पाउलं, हारि-तुटुंत बहुहार-मुत्ताउलं, घुसिण-घण-पिंड-परिभरिय सीमंतयं,दिनजण-निवह-बहु-पुगवर-पत्तयं ॥१८९॥ पइ-भवण-दार-बझंत-तोरणं उदय-अत्थवण-वर-समय-विम्हारणं, आहविज्जंत दूरस्थ नियसज्जणं झ त्ति मुच्चंत अइदुहियकाराजणं ॥१९०॥ विहव-संतुट्ठ-वर-वंदि-विंदारयं, हारिहीरंत-सिरि-धरिय-वर-चीरयं, दाणकज्जेण विहडंतभंडारयं, तत्थ अवयरणसुर-चित्त-वद्धारयं ॥१९१॥ वद्धावणयं राया करेइ तह तीए नियय-नयरीए । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy