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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
चुल्लहिमवंत-हिमवंतसेलुब्भवा, वक्खारगिरिपमुहसिहरि सिहरुब्भवा । खित्तकलसेस कप्पूरवरचंदणा, वरअगरुपमहअन्ने वि मणनंदणा ॥१४१ ।। उच्छाहु धरेविणु ते वि गहेविणु, अवरह तित्थह सलिलभरु । कलस भरेविण करयलि लेविण, झत्ति पत्त सरगिरि सिहरु ॥१४२॥ अह पारिजायमंजरित्रणाह, नियगंधसवासियगंधवाह । मंदारजाइ-केयइविसाल, परिमलमिलंतरोलंबमाल ॥१४३॥ मचकंद-कंदमयरंदसार, कंकेल्लि फल्लविय इल्लफार । घणसार अगरुगुरुगंधसार, वरधूविणं, धूविय अइसुतार ।।१४४।। पउमप्पह जयपहुजम्मकालि, तूरारवभरियनहतरालि । अच्चुयसुरराइण पंचवण्णवरकुसुमवुट्ठि निम्मिय रवन ॥१४५॥ नच्चंत तियसकामिणिगणेस, गिज्जंतमंजमंगलसएस । ते कलसपलोट्टिय नाह देहि, अप्पाणु ठविउ निव्वाणगेहि ॥१४६॥ बासट्ठिहिं इंदिहिं कय आणदिहिं पउम्मप्पह जिणवरु ण्हविउ । बहुपयडियपाडिहिं नियपरिवारिहिं पावपंकु दूरेण ठिउ ॥१४७॥ ईसाणसुराहिउ पंचरूवु, अह कुणइ तत्थ अइसयसरूव । तस्सेव अंकि मिल्हेवि नाह सोहम्म-सामि-पुरपरिह-बाहु ॥१४८।। वरवसह कुणइ चउदिसि रवन्न, फालिहमणिमय अइधवलवण्ण । केलासु सेलु चउहा विहत्तु जिणजम्मकालि नं तत्थ पत्तु ॥१४९।। उत्तुंगह सिंगह वारिधार, उच्छलिय मिलिय गयणयलितार । तो इक्क कालि जिणअंगिताउ, निवडति विहिय कोऊहलाउ ॥१५०॥ सो नाहु वारिधाराहिं भाइ, निज्झरण मणोहरु निसढ नाइ । उवसंहरित्तु रूवाणि ताणि, जिणतणु लुहेइ तो कुलिसपाणि ॥१५१ ।। वरअंगराउ पउमप्पहस्स, सो कणइ रत्त-पउमप्पहस्स । परिहावइ वत्थिर्हि तस्स अंगु, आभरणगणिण भूसेइ चंगु ॥१५२।। निम्मवइ तयण नव-पारिजाय-कसमेहिं पूयह हय-अंतराय । आलिहइ अट्ठमंगलवरेहिं, जिणपुरउ कणयमयतंदुलेहिं ॥१५३।।
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