________________
जम्मवण्णणं
१७५
अवरेण धरइ मणहरण छत्तु, नज्जइ मयंकुसेवत्थु पत्तु । रूवेहिं दोहि वरचामराणि, सुरसरिपवाहलच्छीहराणि ॥१२८॥ उव्वहइ कुलिसरामचिएण, रूवेण सुराहिवउ पंचमेण । सो सामि विणोयणि उज्जमंतु, वच्चेइ कुलिसु उल्लालयंतु ॥१२९॥ कयभत्तिपयारिणसुरपरिवारिण, कंचणमयसुरगिरिसिहरी । अइपंडुसिलायलि जिणवरु करयलि, करिवि झ त्ति संपत्तु हरि ॥१३०॥ मणिमयसीहासणि दसदिसिभासणि विसइ सक्क परमेसरह । पउमप्पहनाहह अमयपवाहह, निहियदिठ्ठि मुहि जिणवरह ॥१३१ ।। अह अच्चयपमहसराहिवेहिं, जिणजम्म मणिय चलियासणेहिं । संपत्त तेवि वियसंतनित्त, जिणजम्मणविहि कयनिविडचित्त ॥१३२॥ तेसट्ठिइंदा पउमप्पहस्स, कुव्वंति भत्ति हयवम्महस्स । ढालंति के वि वरचामराणि, खीरोयलहरीसमणोहराणि ।।१३३॥ गायंति के वि जिणगुणविसाल, पउमप्पह-पय-पंकयमराल । नच्चंति जेम घणसमयमोर, जिणनाहवयणहिमकरचकोर ॥१३४॥ के वि ह पढंति मागहसमाण, वरचरियजिणिंदह अप्पमाण । कुव्वंति के वि गलगज्जिरावु, वायंति वीण मणि धरिवि भावु ॥१३५॥ तेसट्ठिहिं इंदहिं निय सुरविंदहि, भत्ति एम पयडिय पवर । अच्चयसुरनाहिण भत्तिसणाहिण, भणिय तयण किंकरनियर ॥१३६॥ लहिवि आएस सामिस्स, ते किंकरा कलस-मणहरण कव्वंति ते उद्धरा। सहसमठ्ठत्तरं कलस-कंचणमया, मणिमया तित्तिया तहय रुप्पयमया ॥१३७॥ रुप्प-रयणामया रुप्प-सोवण्णिया, रयण-सोवण्णिया तेहिं णिम्माविया । तहय वररयण-वरकणय-रुप्पमया, तित्तिया चेव पण तह य मट्टियमया ॥१३८॥ सहस्स अट्ठेव अहियाइ चउसट्ठिए, ते विउव्वंति निय चित्तसंतुट्ठिए । भिंगार-आयंस-पप्फचंगेरिया, एत्तिया थालपमहाय निम्माविया ||१३९॥ कुंभसंखाइरयणाइ परिनिम्मिविया, निययसामिस्स सव्वे वि संढोइया । झत्ति गच्छंति खीरोवरसायरे, कलसपूरिति सलिलेहिं अलसेयरे ॥१४०॥
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org