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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
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एयं पि तुह कहेमो, नरकुंजर ! कुंजरेण दिट्टेणं । उम्मूलिस्सइ सो तह जाओ भव-काणणं सयलं ॥७६।। वसहेणं धम्मधुराधोरेओ राय! वसह-दिट्टेणं । नर-सीह-मोह-सिंधुर-सीहो, सोहेण दिट्टेण ॥७७॥ नव-नव नवाभिसेए, दुल्ललिय-सरालयम्मि सो होही । जम्माभिसेय-महिमा-महिओ अभिसेय-सुमिणेण ॥७८॥ अमिलाण-कुसुम-दामोवमाण-जस-पसर-दाम-जुयलेण । सो दविहं वरधम्म, पयडिस्सइ भवियलोयाणं ॥७९॥ दिह्रण मयंकेणं, नियकुल-नहयल-मयंकसो होही । कुवलयवियासकारी, सुहावहा भुवणनयणाणं ॥८०॥ अरिकुल-कोसिय-दिणयर-दिणयर-सुविणेण सो धुवं होही । पयडियसमग्ग-मग्गो, मोह-महातिमिर-निद्दलणो ॥८१ ।। अवहरिय-सत्त-सिना, झय-निवह-झएण देव ! दिढेणं । विलसिर-झय-सारिच्छो, सो होही भवण-भवणम्मि ॥८२।। अरि-निवह-कंभ-दासत्त-दाण-दल्ललिय-कंभ-समिणेण । सिव-नयर-पट्ठियाणं, मंगल-कलसोवमो होही ॥८३॥ दुत्थिय-पंथिय-सरवर सो दाही पउम-सरवरे दिढे । भव-पह-पहिय-जणाणं, दुह-हरणो पउमसर-सरिसो ॥८४॥ गुणगण-सायर-सायर-सिविणेण गभीरिमाए सो होही । लायण्णेण य सायर-सरिसो,गुण-रयण-परिकलिओ ॥८५॥ अवयरिओ य विमाणी, कयसत्त-समूह सो विमाणाओ। देवीए सुसीमाए, विमाण-सुमिणाणुसोरण ॥८६॥ हरिय-रिउ-रयण-संचय-रयणच्चय-दंसणेण सो होही । नाणाईण निहाण, पहाण-रयणाण सासइयं ।।८७॥ तह देव ! पयावानल-निज्जिय-सिहि-निवह-कम्मवणसंडं । दहिही खेणण एसो, सिहिम्मि दिट्ठम्मि चउदसमे ॥८८॥
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