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१७२ जम्मवण्णण
ता देव ! चिरं नंदसु, लहेसु मणवंछियं ति जंपित्ता । गच्छंति उवज्झाया, रना सम्माणिया सव्वे ॥८९।। राया उण देवीए, कहेइ सव्वं पि तेहिमक्खायं । हिट्ठा धरेइ गभं, सा जह रयणं रयण-गब्भा ॥९०॥ हिय-मिय-उचियं अन्नं, भुंजइ अन्नं चएइ पडिकूलं । दिढे वि अदिढे वि हु, पत्ते जणणी मणो महरं ॥११॥ चउदंत-दंति-तक्खण-करवत्तिय-दंत-मंडल-कवोला । जाया पंडर-देहा, देवी गब्भाणभावेण ॥१२॥ वियसिय-नव-पंके-रुह-सयणिज्जे दोहलो सुसीमाए । देवीए तया जाओ, उत्तम-गब्भस्स माहप्पा ।।९३॥ सयमेव देवयाहिं, पमोय-वियसंत-चित्त-नित्ताहिं । वियसिय-पंकय-सयणं, काउं सो पूरिओ तिस्सा ॥९४।। रक्खा-मंगल-निद्दा-कलंसुत्तारयणपमहमंगिल्ले । किज्जते नव-मासा, वोलीणा साहिया तिस्सा ॥९५।। कत्तिय-बहुले बारसि तिहीए चित्ताए संगए चंदे । परमुच्चेसु केसु वि, उच्चेसु केसु वि गहेसु ॥९६।। सा अद्धरत्त-समए, सूर पुव्व व्व निहयतम-पसर । निस्सीमं नर-रयणं, सुयं सुसीमा पसूय त्ति ॥९७॥ जायम्मि विजयनाहे, तइया तेलक्क-मंगल-पईवे । अचला वि निब्भरेणं हरिसेण धरा समल्लसिया ॥९८॥ तह अहिणव-दिणनाहे, संजाए तम्मि सुरवरसएसुं । सेविया सा कइरविणी संजाया कमलिणी तह य ॥९९॥ नेरइयाण वि सुक्खं, तइया जायं पहुम्मि जायम्मि । सुपुरिस-जम्मो जयदुह-मम्मं निक्कंदए जइ वा ॥१००॥ नीसेस भवणगरुणो, जसेण अहमहमिगाइपसरतो । भवणत्तयम्मि तइया, उज्जोओ झ त्ति वित्थरिओ ॥१०१॥
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