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जम्मवण्णणं
पयडिय-समग्ग-मग्गं, मणि-कंडल-विजिय-कमलिणी-नाहा । उल्लासिय-कमल-वणं, अवलोयइ कमलिणी-नाहं ॥५०॥ विविह-पडाया-लडह, रणत-विलसंत-किंकिणि-समूहं । पिय-जणय-गत्त-मंदिर-झय-सरिसा सा झयं नियइ ॥५१॥ सवियास-कसम-माला-मालिय-मय-सरहि--चंदण-रसेण । टिविडिक्कियं नियच्छइ,कलसं घण-पुण्ण-कलस-समा ॥५२॥ संहरिय-पहिय-दाह,रहंग-सारंग-निवह-वायाल । लायण्णलहरि-सरवर-सरिसा सा नियइ पउमसरं ।।५३।। भंगुर-तरंगमाला-मालिय-निसेसनहयलाभोगं । लवणिम-गण-गंभीरिम-जिय-जलही-जल-निहिं नियइ ॥५४॥ निय-देह-दित्तिलहरी-जिय-रयण-विमाण-दित्ति-पब्भारा । सा नियइ मणि-विमाणं, पडाय-मालाउलं रम्मं ॥५५॥ पसरंत-दित्ति-लहरी-संहारिय-सयल-तिमिर-पब्भार । सोण-नह-निवह-निज्जिर-रयणा रयणच्चयं नियइ ॥५६॥ निय-चंग-अंग-दित्ती निज्जिय-सिहि-निवह-दित्ति-पब्भारा । धूम-समूह-विवज्जियमेसा,सुमिणे सिहिं नियइ ॥५७।। अह कत्थ वि गंतूणं, वियारमेयाण रम्म-सुविणाण । पुच्छेमि त्ति इमाए पढमं निद्दा गया सहसा ॥५८।। झ त्ति विबद्धा मद्धा, पहरिस-पीयूस-पूरिय-सरीरा । गच्छइ पियस्स भवणे,मणिमय-रण-झणिर-मंजिरा ॥५९।। निद्दा-मुद्दिय-नयणं, निवं वियाणित्तु मुद्दियानिवहं । उत्तारिय संवाहइ, पिय-पय-जयलं सहत्थेहि ॥६०॥ अवगय-निद्दा-मुद्दो, राया पलइयत्त पलइय-सरीरं । देविं जंपइ संपइ, किं इह पत्तासि ? करभोरु ! ॥६१॥ सा आह नाह ! दिट्ठा, अज्ज मए वरकरिंद-वसहाई । चउदस-रम्मा सुमिणा, पुच्छेमि वियारमेएसिं ॥६२॥
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