SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाम समरसिंह रखा । समरसिंह युवा हुआ । वह स्वभाव से बड़ा उदार था । वह दीन, दुखियों, अनाथों में लाखों की सम्पत्ति बांट देता था। राजा को कुमार की यह उदार और उडाउ वृत्ति अच्छी नहीं लगी । उसने कुमार को देश निष्कासित कर दिया। कुमार अपने गांव से निकल कर अनेक ग्राम, नगरों में भटकता हुआ एक पर्वत की गुफा में पहुंचा । वहां कुछ किमियागिर स्वर्ण बनाने का प्रयत्न कर रहे थे किन्तु साहसी उत्तर साधक के बिना वह अपने कार्य में सफल नहीं हो रहे थे । कुमारने उत्तरसाधक बनकर उनकी सहायता की । धातुवादी स्वर्ण बनाने में सफल हुए । कुमार की वीरता से प्रसन्न हो कर किमियागिरों ने सारा स्वर्ण कुमार को दे दिया । कुमार ने भी उन में स्वर्ण बाट दिया । कुमार वहां से निकला और चनक नाम के गांव में तुंदिल नामक यक्ष के मंदिर में पहुंचा । यक्ष मन्दिर के आंगन में एक सूखा आम्रवृक्ष था । कुमार के प्रभाव से वह वृक्ष नवपल्लवित हो गया । यह चमत्कार देख यक्ष कुमार पर बहुत प्रसन्न हुआ। वहां प्रतिदिन मध्य रात्रि के समय योगिनियां किसी व्यक्ति को बाहर से अपहरण कर यक्षमंदिर में लाती थी और उत्सव पूर्वक उसका बलि चढाती थी । उस दिन भी योगीनियों ने लग्रमण्डप में विवाह के लिए बैठे हुए एक व्यक्ति को उठा लायी और उसकी हत्या करने की तैयारी करने लगी । मृत्यु के भय से पुरुष करुण क्रंदन कर रहा था । समरसिंह को उस पुरुष पर दया आई । उसने योगिनियों को ललकारा और उनसे खग युद्ध कर उन्हें पराजित कर दिया । योगिनियां भाग गई । कुमार के कहने से यक्ष ने उस तरुण को उसके स्थान पर पहुंचा दिया । कुमार के पराक्रम से प्रसन्न तुंदिल यक्ष उसका सदैव के लिए सेवक बन गया। कुछ दिनों के बाद वहां से निकल कर कुमार घूमता हुआ श्रीमन्दिर नाम के नगर में पहुंचा । वहाँ महाबल नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम जयंती था । अच्युतकल्प से चवकर रोहिणी का जीव जयन्ती के उदर में आया । जयन्ती ने एक सुन्दर पुत्री को जन्म दिया । देवताओं ने रत्नवृष्टि की । राजा ने पुत्री का जन्मोत्सव किया और कन्या का नाम रत्नमंजरी रखा । रत्नमंजरी ने सभी कलाओं में कुशलता प्राप्त की। युवावस्था में उसका सौंदर्य इतना आकर्षक था कि नगर के युवा वर्ग उसको पाने के लिए सदैव प्रयलशील रहते थे । एक बार जब समरसिंह नगर में घूम रहा था तब नगर चर्या करती हुई राजकुमारी रत्नमंजरि की उस पर दृष्टि पडी । पूर्व जन्म के स्नेहवश वह उस पर मुग्ध हो गई । रत्नमंजरी हाथी पर बैठी हुई थी। सहसा हाथी उन्मत्तदशा में पागल हो गया । कुमार न बडे साहस के साथ हाथी को वश में कर लिया । अपनी पुत्री को मृत्यु के मुख से बचाने वालो कुमार समरसिंह पर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। एक बार एक विद्याधर ने राजकुमारी रत्नमंजरी का अपहरण किया। समरसिंहने अपहरण कर्ता विद्याधर के साथ यद्ध कर उसे पराजित कर दिया और राजकमारी को उसके बन्धन से मुक्त किया । राजा ने रत्नमंजरी के साथ कुमार का विवाह बडे उत्सव के साथ करवाया । दोनों सुख पूर्वक श्रीमन्दिर नगर में रहने लगे। ___एक बार देव विमान से उतरकर एक देव समरसिंह के पास आया और बोला-कुमार । शतद्वार नगर का असंख्यबाह नामक राजा अपुत्र ही मर गया । उसका राज्य पाने के लिए सगोत्रीय सामन्तगण आपस में युद्ध कर रहे है । उनके आपसी कलह के कारण सारा राज्य अस्त व्यस्त हो गया । तब मंत्रीयों ने पुरवासिणी देवी की आराधना की । प्रसन्न हो कर देवी ने कहा-इस राज्य के योग्य समरसिंह नामका एक कुमार है वह श्रीमन्दिर नगर में रहता है । देवी के कहने से मै अमृताम्बर केशरीयान में बैठकर आपके पास आया हूं | आप मेरे साथ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy