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पुट्ठेहिं मंतिपुत्तो, समप्पिओ तेहिं सा तयं भइ । मह कहसु वच्छ! तत्तं पुच्छावइ रायवरकन्ना ॥१६११॥ कहिऊण तेण सव्वं, सिक्खविया सा कहेसु कन्नाए । सिरितिलयनयरनाहो, राया सुरसुंदरी नाम ॥१६१२ ।। तेण इमं नियचरियं, जाई सरिऊण निम्मियं सम्मं । केण वि कज्जवसेणं, पट्ठवियं विविहदेसेसु ॥१६१३॥ सुरसुंदरआएसा, लंखा तं फलिहि-लिहियपरमत्थं । गायंति निद्दिसंता, एत्थ पुरे चच्चराईसु ॥ १६१४।। इच्चाइ जंपिऊणं, अप्पसु फलिहं इमं च छेवाडिं । जइ होइ अत्थिणी सा, तो संकेयं करिज्जासु ॥१६१५ ॥ तो सा गंतुं तीसे, कहिउं अप्पेइ चित्त-फलिहाई । कना साहित्राणं, निएइ नियचरियमामूलं ॥१६१६ ॥ जह सारसेण अप्पा, बहुयं निंदियनियम्मि नीडम्म । खित्तो जलंतजलणे, जह सो निसुओ नमुक्कारो ॥१६१७|| इय पज्जंतं सव्वं, सजम्मदियहाउ तं नियं चरियं । पिच्छंती विद्देसं, मिल्लइ निम्मोयमिव भुयगी ॥१६१८ ॥ चिंतइ चित्ते एसा, अहह! निय पाणवल्लहो तइया । तह मरमाणो वि मए, न याणिओ कूड - हिययाए ॥१६१९ ॥ नूणं तुच्छप्पयई, नारी तह कूड - कवडसंघडिया । तेणेव अप्पसरिसं, तइया मन्त्रेमि तं दइयं ॥१६२० ॥ सुव्वइ सत्थे इत्थी, पच्छा गच्छेइ निययभत्तारं ।
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
पुण एयं विवरीयं, विहियं तह तेण मरिऊण ॥१६२१ ॥
तो मह जाणणकज्जे, देस देसाउ पेसए पुरिसे ।
तं पुण निंदेमि अहं, मह तस्स य पिच्छह विसेसं ॥१६२२॥ सा एवं चिंतंती, तक्खणघणसेयसलिलमउअंगी ।
विद्धा विसमसरेणं, सरेहिं चिरलद्धलक्खेहिं ॥१६२३ ॥
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