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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
संहरमाणो समयं, नज्जइ जमजिट्ठबंधु व्व ॥१५८४।। कारुपनहियया, तो हं चिंतेमि एरिसो दावो । अइभीमो भीयाए, मए वि दिट्ठो कहिं आसि ॥१५८५।। ऊहापोहं तत्तो, कुणमाणी पुव्वजम्मअणुभूयं । सव्वं सरेमि पुव्वं, जह आसी सारसी अहयं ॥१५८६॥ तथाहि - लवणोयहिपज्जते, वेलावणसंडमत्थिविच्छिन्नं । तत्थ य सारसमिहणं, वडसाले चिट्ठए सहयं ॥१५८७।। अह सारसीए भणिओ, पायडगब्भाए सायरं दइओ ।। चयसु इमं वडरुक्खं, कडक्खियं दुक्खलक्खेहिं ॥१५८७।। अह सारसो वि तं पइ, जंपइ उल्लंठनिठुरं एयं ।। अइकायरासि अइपंडिआसि अइभूरिभविसनिउणासि । जइ कह वि दिव्वजोगा, जायइ जायाण को वि ह अवाओ । ता रक्खेमि अहं चिय, मरेमि अहवा न संदेहो ॥१५९०॥ अह मज्झ पसूयाए, वणदावो गिम्हवासरे जलिओ । वित्थारिय पक्खजया, थक्का अहमेव नीडम्मि ॥१५९१ ।। सो सारसो वि पावो, दावं दठूण जीवियं निययं । गहिऊण गओ कत्थ वि, अहव नरा एरिसा सव्वे ॥१५९३।। तो हं चिंतेमि इमं, नरम्मि एमेव महिलिया नूणं । नेहरहियम्मि नेहं, पयडइ निबिडं महामूढा ॥१५९४॥ एत्थंतरम्मि केण वि, दिनो कन्नाण सुहयरो अहियं । परमिट्ठिपरममंतो, मए वि हरिसेण सो निसुओ ॥१५९५।। तस्सेव पभावेणं, जाया रायस्स कन्नया अहयं । संजायजाइसरणा, परिसे विद्देसिणी जाया ॥१५९६।। सुणिउ भवतरुत्त, नियवयण कूडतावसी तत्तो । मच्छानिमीलियच्छी, धस त्ति धरणीयले पडिया ॥१५९७॥
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