SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ सिरिपउमप्पहसामिचरियं संहरमाणो समयं, नज्जइ जमजिट्ठबंधु व्व ॥१५८४।। कारुपनहियया, तो हं चिंतेमि एरिसो दावो । अइभीमो भीयाए, मए वि दिट्ठो कहिं आसि ॥१५८५।। ऊहापोहं तत्तो, कुणमाणी पुव्वजम्मअणुभूयं । सव्वं सरेमि पुव्वं, जह आसी सारसी अहयं ॥१५८६॥ तथाहि - लवणोयहिपज्जते, वेलावणसंडमत्थिविच्छिन्नं । तत्थ य सारसमिहणं, वडसाले चिट्ठए सहयं ॥१५८७।। अह सारसीए भणिओ, पायडगब्भाए सायरं दइओ ।। चयसु इमं वडरुक्खं, कडक्खियं दुक्खलक्खेहिं ॥१५८७।। अह सारसो वि तं पइ, जंपइ उल्लंठनिठुरं एयं ।। अइकायरासि अइपंडिआसि अइभूरिभविसनिउणासि । जइ कह वि दिव्वजोगा, जायइ जायाण को वि ह अवाओ । ता रक्खेमि अहं चिय, मरेमि अहवा न संदेहो ॥१५९०॥ अह मज्झ पसूयाए, वणदावो गिम्हवासरे जलिओ । वित्थारिय पक्खजया, थक्का अहमेव नीडम्मि ॥१५९१ ।। सो सारसो वि पावो, दावं दठूण जीवियं निययं । गहिऊण गओ कत्थ वि, अहव नरा एरिसा सव्वे ॥१५९३।। तो हं चिंतेमि इमं, नरम्मि एमेव महिलिया नूणं । नेहरहियम्मि नेहं, पयडइ निबिडं महामूढा ॥१५९४॥ एत्थंतरम्मि केण वि, दिनो कन्नाण सुहयरो अहियं । परमिट्ठिपरममंतो, मए वि हरिसेण सो निसुओ ॥१५९५।। तस्सेव पभावेणं, जाया रायस्स कन्नया अहयं । संजायजाइसरणा, परिसे विद्देसिणी जाया ॥१५९६।। सुणिउ भवतरुत्त, नियवयण कूडतावसी तत्तो । मच्छानिमीलियच्छी, धस त्ति धरणीयले पडिया ॥१५९७॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy