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सुरसुंदररायकहा
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नियआसमम्मि थक्का, राया एगो गओ तत्थ ॥१५७१ ॥ देवच्चणाइकज्जे, कयम्मि सा कूडतावसी भणइ । रूससि जइ न वि संदरी, एयं पच्छेमि तो अहयं ॥१५७२॥ नाहं भणेमि कहमवि, चउगइभवभमणकारणं पढमं । मनसु तुमं विवाहं, विहियविवाहं सया चेव ॥१५७३।। जंपेमि इमं किं पण, नरेहिं किं तज्झ कहस अवरद्धं? ॥ अवहरियं तुह किं वा, विहियं वा विप्पियं तुज्झ? ॥१५७४।। जं मनसि विस-सरिसे, पुरिसे पुरिसाण तहय चित्ते वि । कूणियनासावंसा, थुत्थुकारं पयच्छेसि ? ॥१५७५॥ नेहो व उवेहा वा, दीसइ गरुयाण सव्ववत्थूसु । तो मनेमि नरेसुं, विद्देसे कारणं तुज्झ ॥१५७६॥ जइ नेव अकहणिज्जं, तो मह साहेस निययसब्भावं । नेहस्स एस महिमा, जं खलु सब्भावनिज्झरणं ॥१५७७।। इय तीए जंपिराए, विगलिरनयणंसुसलिलपब्भारा । सा समरियनियचरिया, गग्गयगलकंदला जाया ॥१५७८।। आमज्जिय नियनयणे, कहमवि जंपेइ · रायवरकन्ना ।। भयवइ ! परस्स निंदं, करेमि नाहं जगते वि ॥१५७९।। साहेमि किंतु तत्तं, पुरिसा कुलिसाउ निठुरा चित्ते । अमयाउ वि वायाए, महुरा दूरेण चइयव्वा ॥१५८०॥ कित्तियमित्तं भणिमो, तह परओ परिससंतियं चरियं? तह वि ह अणहवसिद्धं, वीसत्था किं पि साहेमि ॥१५८१ ।। पुव्विं सहीहिं सहिया, पत्ता उज्जाणदंसणनिमित्तं । लीलाहिं विचित्ताहिं, कोलंति जाव चिट्ठामि ॥१५८२॥ ताव मए सच्चविओ, आसन्ने पव्वयम्मि पज्जलिओ । दावहुयासो जालामालासयसहसदुप्पिच्छो ॥१५८३।। दुपय-चउपय-अपए, अट्ठप्पाए य विडविणो तह य ।
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