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राया इत्थी जाओ, कन्ननिबद्धाए मूलीए ॥१५५८ ।। कोऊहल-तरलमणा, समप्पिउं सा वि तावसीवेसं । सिरिधरियजडा मउडं, तवस्सिणिं कारए रायं ॥ १५५९ ॥ अप्पाणं दट्ठूणं, सो चिंतइ हंत ! तव्विओगम्मि | एस च्चिय मह उचिओ, वेसो बहुदुक्खलक्खहरो ॥१५६०॥ अन्नदिणे सा कित्तिमतवस्सिणीए करम्मि अप्पेउं । वरकुसुम-पत्र पडलं, गच्छइ कन्ना समीवम्मि ॥ १५६० ॥ सा बाला तं पुच्छइ, भयवइ ! एसा नवल्लिया अज्ज । दीसइ तुज्झ विनेया, इमाए नामाइ तो कहसु ॥ १५६२॥ सा भाइ भाय! धूया, मह एसा एत्थ वणनिवासाओ । अवसेरीए पत्ता, निक्कित्तिमनामिया सुयणु ! ॥१५६३॥ लीलाकुमारी कन्नं, दट्ठूणं कूडतावसिं तं च । चिंतइ तवस्सिणी सा, किमेग बिंटाउ खुडियाणि ? ॥ १५६४॥ किं वेगनाल - मूलुब्भवाणि एयाणि? अहव एएसिं ।
विहिणो घडणे जाया, अन्नोनं रूव-छेवाडी ? ॥१५६५ ॥ विसरिसदेसभवाण वि, पिच्छह एयाण सरिसतणुलच्छिं । जइ घडइ हंत ! जोगो, ता हीरइ किं नु हय विहिणो ? ॥१५६६॥ चिंतंतीए तीए, निकित्तिमनामिया तओ झति ।
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
देवच्चणाइसव्वं, संपाडइ पयडकोसल्ला ॥१५६७॥ तीसे कलाकलावं, कलिऊणं मणइ कन्नया तत्तो भयवइ ! एयं निच्चं, आणिज्जसु अप्पणा सद्धिं ॥ १५६८॥ आमं ति जंपिऊणं, पत्ता सा तावसी नियं ठाणं । एवं दियहे दियहे, तीए सह वच्चए एसा ॥ १५६९ ॥ वीणाइविणोएहिं तह विहिया हरियहिययसव्वस्सा । जह तीए विणा सव्वं, सा कन्ना मन्त्रए सुन्नं ॥१५७० ॥ समयंतरम्मि रण्णो, उवरोहवसेण तावसी थविरा ।
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