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________________ ११४ सिरिपउमप्पहसामिचरियं किंतु न को वि हु पत्तो, चंदपुराओ न यावि तनाम । निसयं जइ वा दलहं, नाम पि ह इट्ठवत्थस्स ॥१४५७॥ पच्छंतो वि ह मंती, अविणयसीस व्व सत्थपरमत्थं । न लहइ जइया सुद्धिं, सुमिण य दिट्ठस्स नयरस्स ॥१४५८।। तो ठाणविउणियाए, जोयणविद्धीए टंकनिवहं पि । वद्धारंतो दुइए मासम्मि इमं पयंपेइ ॥१४५९।। दो जोयणस्सयाओ जो एही तस्स वीसटंकाणि । देमि त्ति अहव मंदा गयाऽऽनारंभनिव्वहणे ॥१४६०॥ एवं चत्तालीसं, तइए मासम्मि देइ पहियाणं । जोयणसयतियगाओ, आगयमित्ताण सो मंती ॥१४६१ ॥ एवं चउत्थ-पंचममासेस वि तेण वियरमाणेण । कुट्टिणिमणवित्ती विव, लद्धा नो कह वि तस्सद्धी ॥१४६२॥ छट्ठट्ठमतवनिरओ, छठे मासम्मि दगणियं दितो । जा चिट्ठइ सो मंती, तत्तो दूराओ देसाओ ॥१४६३॥ बाहिं पि ह अप्पाणं, पयडंतो पावपडलसंछन्नं । धूलीधूसरगत्तो, रयभरपिंजरियचिहुरचओ ॥१४६४॥ नियमंस-सोणियाई, नळं दळूण चम्म-अट्ठीणि । बंधंतो विव सनिबिडपयडसिराजालबंधेहिं ॥१४६५।। देहाऽऽऊरणउव्वरिय छुह-तिसाईहिं मुत्तिमंतीहिं । लंबंतलंबचीवरचीरियमालाहिं पिहियंगो ॥१४६६।। अइदीह-पह-विलंघण-समवससंजायसेयदुप्पिच्छो। अद्धाणलंघणक्खमदीहरजंघालंघणजंघो ॥१४६७।। सा कत्थ सत्तसाला? सो वा मंती वि कत्थ? पइपरिसं । इय पुच्छंतो पत्तो, एगो पावासओ तत्थ ॥१४६८॥ कयपायसद्धिपव्वं, मणनपक्कन्न-वंजणसणाहं । भोत्तुं मंतिसयासे, पत्तो टंकाण गहणत्थं ॥१४६९।। माऊरछत्तअंतरियतरणितावेण तेण सचिवेण । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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