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सुरसुंदररायकहा
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तं चिय झायइ तरुणिं, तह वि दप्पा इमो अप्पा ॥१४४३॥ तह उवएसो एसो संपइ, खयखारखेवसारिच्छो । अप्पा वि ह विम्हरिओ, दूरे मह अवरवावारा ॥१४४४॥ इय कामग्गहगहियं, रायं आसासिऊण मित्तेण । अच्चाहियभीएणं, तेण पइना इमा विहिया ॥१४४५॥ छम्मासम्भंतरओ, अत्थि य नत्थि त्ति समिणपज्जंतं । न मणेमि सामि ! जइ तो पविसेमि जलियम्मि जलणम्मि ॥१४४६।। ता भव निच्चिंतो तं चिंतस देवच्चणाइकिच्चाणि । इच्चाइ जंपिऊणं, ते पत्ता दो वि अत्थाणे ॥१४४७।। वीसज्जिय अत्थाणं, पत्तो चिंतेइ मंदिरे मंती । हंत ! मए किह एसा, तरियव्वा दत्तरा संधा ? ॥१४४८।। राया ताव दुहत्तो, तद्दुहदुहिओ अहं पि कयसंधो । वत्तामित्तं पि पणो, न सयं चंदउरपरपमहं ॥१४४९।। हुं नायं मणहरणं, सत्तागारं कराविउं सहसा ।। जाणिस्सं दुरागयपहियमहाओ इमं सद्धिं ॥१४५०॥ इय चिंतियमंतिसुओ रम्मं निम्मवइ सत्तवरसालं । कम्मयरा कम्मयरी, निरोविया तत्थ अइचउरा ॥१४५१॥ पच्चक्खं पहियाणं, संलत्तं तेण उच्चसद्देण । जोयणसयाउ जो इह अहिणवपहिओ समागमिही ॥१४५२।। भोयणविहाण-वसणप्पयाणसम्माणपव्वमिह तस्स । दायव्वं टंकाणं, दसगं अम्हेहि निब्भतं ॥१४५३ ।। तल्लोहेण य पहिया लोहागरिसेण लोहमिव झ त्ति । आयड्ढिया समंता एंति तहिं सत्तसालाए ॥१४५४|| भोत्तूण विविहमंडय मरक्किया मोयगाइवरभोज्जं । गच्छंति मंति पासे, गिम्हति य वत्थटंकाई ॥१४५५॥ पहियमुहकुहरघंटाजीहा, अइलोहलालिया पहया । वज्जती नरवइणो, वित्थारइ कित्तिटंकारं ॥१४५६।।
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