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सिरिपउमप्पहसामिचरिय
निरुवमसिणेहसारं, सारस-मिहुणं वसइ तत्थ ॥१२९८।। जुण्हा-ससीण नह-अंगुलीण तह देहवयवाणं । जीव-भवियव्वयाणं, उवमाणं लहइ तनेहो ॥१२९९॥ समगं नहम्मि समगं, महिम्मि समगं नइम्मि सच्छंदं । रममाणाण य ताणं, वक्कंता कइवि कालकला ॥१३००।। अह अन्नया इ दइया पियस्स परओ नियाए भासाए । गब्भभरनिब्भरालसदेहा जंपेइ सुवियारं ॥१३०१ ।। पिययम ! पच्चासन्नो, समओ पसवस्स वट्टए मज्झ । बढ्दोसकोससालं, एयं पिच्छामि वडसालं ॥१३०२॥ अस्सहिं - बहदहिया इव अधणस्स पासि दीसंति वंसजालीओ । अनयनिरयस्स आवइमाला इव दावमालाओ ॥१३०३।। जइ कह. वि दिव्वजोगा, वंसो वंसेहिं घंसिओ अग्गी । जायइ तो मह सरणं, मरणं चिय बालसहियाए ॥१३०४॥ मत्तूण इमं तम्हा, जलनिहिजलसंठियम्मि वडसाले । एगागिम्मि विसाले, निविडं नीडं करिज्जासु ॥१३०५॥ निरवायम्मि पएसे, सया वि इह सहम-दीह-दंसीहि । आवासो कायव्वो, विसेसओ जायजाएहिं ॥१३०६॥ अह सारसो वि तं पइ, जंपइ उल्लुंठनिठुरं एयं । अइकायरा सि अइपंडिया सि अइभूरिभविसनिउणासि । मायासि जमेयं, रुक्खं संताणसंगयनिययं । इह तुह अहिययरा वि हु, पुव्विं बहुया पसूयाओ ॥१३०७॥ लोगपसिद्धी एसा, सहिज्जं पंचहि जणेहिं सह दुक्खं । वसियाणि पुणो इहयं, बहूण पक्खीण लक्खाणि ॥१३०८।। अविय जइ कह वि दिव्वजोगा, जायइ जायाण को वि हु अवाओ । ता रक्खेमि अहं चिय, मरेमि अहवा न संदेहो ॥१३०९।।
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