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________________ रोहिणीकहा पणतीसाइसयगिरो, अट्ठमहापाडिहेरकयसोहा । तिहुयणअणन्नपहुणो, तित्थयरा हुंति भवणम्मि ॥१२६०॥ तित्थयराण वि रिद्धी लब्भइ ? कह नाह ! कहसु इय पुट्ठे । भासइ भयवं एसा, वि हवइ तवसा सुचिणं ॥१२६१॥ तह दिक्खापारंभे, तित्थयराणं तिलोयपुज्जाणं । नमणिज्जा निस्सेसिय कम्मंसा देहपरिमुक्का ॥१२६२॥ इगतीसगुणसमेया, सव्व पइट्ठाय पगरिसं पत्ता । तहणंतचउक्कजुया, हवंति सिद्धा जयपसिद्धा ॥१२६३॥ सिद्धत्तं पि नरेसर ! लब्भइ चित्रेण घोरतरतवसा । तो कुणह तवं तिव्वं, हियकामा - सत्ति भत्तीहिं ॥१२६४॥ भणइ निवो तिव्वतवं भवंतरे सामि ! किं मए विहियं ? | रोहिणि- सिद्धत्थाणं, साहइ तत्तो भवं भयवं ॥१२६५॥ सिद्धत्थो मरिऊणं, जाओसि नरिंद ! समरसीहो तं । सा रोहिणी वि जाया, तुह जाया रयणमंजरिया ॥१२६६॥ तइया इ रोहिणीए, तवं कयं बहुमयं च जं तुम । उज्जमणेहिं तत्तो, जायं सरिसं फलं तुम्हं ॥१२६७॥ तह नरवर ! संसारे, भाया मरिऊण हवइ भत्तारो । भइणी जायइ जाया, तणओ वि भवंतरे जणओ || १२६८|| सोऊण इमं जाई, सरिऊणं रयणमंजरी जायं । तणयं विजयं रज्जे, अहिसिंचइ सो महीनाहो ॥१२६९ ॥ मुणिणो तस्स समीवे, सो राया रयणमंजरी सहिओ । पडिवज्जियपवज्जं, पियाइ जुत्तो सिवं पत्तो ॥ १२७०॥ रोहिणि-सिद्धत्थेहिं, विहियं जह बहुमयं च तिव्वतवं । तह कुणह तवो निच्चं, बहुमन्नह अत्तहियकामा ॥१२७१ ॥ भणियं दाणं सीलं तवो य इहिं तु भावणा वं । साहेमि सदिट्ठतं, धम्मं भवभमणसंहरणं ॥ १२७२ ।। ॥ इति तपसि रोहिणीकथा समाप्ता ॥ Jain Education International 2010_04 • For Private & Personal Use Only ९९ www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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