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________________ रोहिणीकहा इच्चाइलोयवाय, सोऊण निवो विसेसओ तुट्ठो । जणयाउ सओ अहिओ, जणेइ महिमं ख जणयस्स ॥१२३४॥ ते दो वि जणय-तणया, विभिन्नधवलहरसिहरमारूढा । चिरमणुहवंति सुक्खं, दुहलेसकलंकपरिमुक्कं ॥१२३५।। समयंतरम्मि रज्ज, दाऊण तस्स कमरस्स । सरगरुगरुपयमूले, पडिवनं चारुचारित्तं ॥१२३६॥ अह समरसीहराया, सयमेवसयदवारनयरम्मि । आगंतूण पयाणं, चिरविरहभवं हरइ दुक्खं ॥१२३७।। सो भरहखित्तखंडे, तिन्नि वि साहेय विक्कमसणाहो नाय-ववसाय-साहसपराण पुरिसाण किमसझं ? ॥१२३८॥ जिणभवणेहिं पहवीमग्गा रह-तित्थविविहजत्ताहिं । विहवेण मग्गणगिहा, पडिपुत्रा तेण निम्मविया ॥१२३९॥ अह समरसीहरायं, सोऊणं धाउवाइणो सव्वे । सो वि ह वम्महनामो, संपत्तो तस्स पासम्मि ॥१२४०।। सो तइया ते सव्वे पूरइदाणेण सद्धणा कुणइ । इयरो वि उद्धरिज्जइ परियणसयणाण किं भणिमो ? ॥१२४१॥ तह तेण सव्वदेसे, पयाणसत्थं विणिम्मियं रना । जह भरह-सगरपमहा, विम्हरिया सव्वलोयाणं ॥१२४२॥ सो वाससहस्साइं, कित्तियमित्ताणि निययपनेहिं । रिद्धि-समिद्धं रज्जं, परिपालइ नियपिया जुत्तो ॥१२४३।। नयरे सयदुवारे, अब्रदिणे मत्तमहुयरारामे ।। केवलनाणी पत्तो, निव्वाणधरो त्ति सुपसिद्धो ॥१२४४॥ राया वनपालेणं, विनत्तो पारितोसियं तस्स । दाऊण रयणमंजरी सहिओ, चलिओ गुरुं नमिउं ॥१२४५।। पच्चक्खं मक्खं पि व, तं मणिनाहं नियम्मि चित्तम्मि । सो मनंतो राया, पणमइ उवविसइ महिवीढे ॥१२४६ ।। _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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