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________________ रोहिणीकहा कयसकयाणं पत्थरघडिया पंचालिया वि आएसं । साहति अउनाणं, परम्महा अंकदासा वि ॥११३१॥ लिहिएण सिलोगेणं, एयं तक्केमि निच्छियं को वि । एसो नरिंदपुत्तो, सुदूरदेसंतरा पत्तो ॥११३२॥ आसन्ना रज्जसिरी, इमस्स फलमसरिसं इमं चेव। अवह कह परिवारे, इमस्स पंचालिया हंति ? ॥११३३॥ धाई जंपइ सामिणि ! कयसुकयसिरोमणी धुवं एसो । पत्तो च्चिय तमए वि ह निरिक्खिओ साहिलासाए ॥ ११३४।। रज्जसिरी पण तं चिय इमस्स कुमरस्स हवसि जं दइया । रज्जे वि फलमिणं चिय जं तरुणिसिरोमणी रमणी ॥११३५।। उक्तं चराज्ये सारं वसुधा वसुधायां पुरं पुरे सौधम् । सौधे तल्पं तल्पे, वरांगनानंगसर्वस्वम् ॥११३६॥ अह आलाणक्खंभं, उम्मूलइ सरलनलिणिनालं व । समरभयंकरहत्थी, दुद्धरमयसलिलदुद्धरिसो ॥११३७॥ सविसाय निसाईहिं, धारिओ पडियारकरणविमुहेहिं । पडिकारेहिं तिस्सा, सो पत्तो भवणपासम्मि ॥११३८।। कुचकुंभेणं मंथरगईए, तं मुणिय निययपडिवक्खं । सामरिसो वि व तिस्सा, भवणं वि हु पाडिउं लग्गो ॥११३९।। आयड्ढइ दढथंभे पयंडसुंडाइदंतमुसलेहिं । घोरासणिसरिसेहिं पाडइ वरभित्ति संघायं ॥११४०॥ राया पायारठिओ विहत्थ चित्तो पयंपए तत्तो । जो एयं मह कन्नं रक्खइ कन्नाए भवणं च ॥११४१ ।। वरगाम-देस-पट्टण-कन्नाए सुहाणि तस्स वियरामि । अह समरसीहकुमरो सोऊण इमं तहिं पत्तो ॥११४२।। पच्छासणस्स ठाणे, ताडइ तं घोरमट्ठियाएण । जह जह सहसा हत्थी, सो वि विहत्थो तया जाओ ॥११४३॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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