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________________ सिरिपउमप्पहसामिचरियं सो चिंतइ का एसा, ? दलेहि केहिं व निम्मिया केण ? । विहिणा पडिछंदेणं, केण व काए व सिक्खाए ? ॥१११८।। मन्ने नियरूवेणं, जियाउ एयाए तियसतरुणीओ । निवसंति सग्गदग्गे रसायले अच्छराओ वि ॥१११९॥ सीमंतिणी समूहा, ते धन्ना जे इमीए परिवारे । आमरणं परिसत्तणकलंकिया अम्हारिसा धिद्धी ॥११२०॥ इय चिंतिराणि दोन्नि ,वि नलिणीनालोवमेहिं सरलेहिं नयनेहिं दूरे वि हु, पियंति पिम्मामयं ताणि ॥११२१ ।। खणमित्तेण कुमरो, वच्चइ नयरस्स मज्झयारम्मि ॥ अह रयणमंजरीए चित्तं परिमुणियपिम्ममयं ॥११२२ ।। धाई पेसइ दासिं, कुमारवुत्तंतजाणणनिमित्तं । । कमरो उण परमज्झे, संपत्तो सन्न-देवउले ॥११२३॥ अह मत्तवारणोवरि, उवविसियमणम्मि चितिउं किंचि । गहिऊण खडिखंडं, लिहइ सिलोग इमं खंभे ॥११२४|| अनीहमानोऽपि बलाददेशज्ञोऽपि मानवः । स्वकर्मवातैरुत्पाट्य, नीयते यत्र तत्फलं ॥११२५॥ अद्धम्मि सिलोगस्स य, लिहियम्मि कुमारपाणिकमलाओ कहमवि खडिया पडिया, गया य दरम्मि सहस त्ति ॥११२६॥ सो तत्थ रसंतरिओ, अप्पं परिवारमज्झयारम्मि । कलयंतो कुणइ करं, पउणं तम्मग्गणा कज्जे ॥११२७।। खानिविट्ठातइया, कुमारपडिपुन्नपुत्रमाहप्पा । उत्तरिउं पत्तलिया, तस्स करे अप्पए खडियं ॥११२८॥ लिहिए पुनसिलोगे,गंतु तं वइयरं असेसं सा । स चमक्कारा कत्रा, पच्चक्खं कहइ धाईए ॥११२९॥ अह रयणमंजरी सा, जंपइ हे अंब ! भवणमणहरणं । जम्मंतरसयसंचियसुकयाणं पिच्छ माहप्पं ॥११३०॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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