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________________ रोहिणीकहा तव्वयणेण पलाणो रसस्स पडिबंधओ तियसो ॥ १०५२॥ उक्तं च सख्या बुद्धया न यत् साध्यं, सहसा साहसेन च । तत् स्याद् वचनमात्रेण, कार्य पुण्यवतां ध्रुवम् ॥१०५३॥ पडिया सुवन्नरासी, ते वि हु नाऊण कुमरमाहप्पं । जंपंति तुज्झ दव्वं, सव्वमिणं गिण्ह ता एयं ॥ १०५४ || कमरो उदारचित्तो, वियरइ सव्वं पि धाउवाईणं । जंपइ य समरसीहं, रायं सोऊण एज्जाह ॥१०५५ ॥ सो पुरओ गच्छंतो, पत्तो गामम्मि चणयनामम्मि । तुंदिलजक्खदुवारे, सुत्तो सहयारमूलम्मि ॥१०५६ ॥ महिमाए तस्स सहसा,सहयारो मंजुमंजरिसणाहो । जाओ परहुय - कलयलवायालो थंभियच्छाओ ॥ १०५७॥ तलिसुत्तह पुण्णग्गलह, रुक्खवि छाह करंति । पुत्रविहुणह सज्जणवि, झत्ति परम्मुहं हुंति ॥ १०५८।। दियहम्मि तम्मि जक्खं, पूइउकामो निकामबहुमाणो । पुनोवाईयनिवहो, गामजणो तत्थ संपत्तो ॥ १०५९ ।। चिंतइ जक्खो नूणं, एसो महिमा इमस्स कुमरस्स । अह नहि मह विहिओ, महूसओ कहवि केणा वि ॥१०६० ॥ अवगयनिद्दामुद्द, तत्थेव य कोउगेण उवविट्ठे । कुमरं निसाए जंपइ, जक्खो होऊण पच्चक्खो ॥१०६१ ॥ साहसिय ! सागयं तुह, तुज्झागमणेण अज्ज सत्थो । तह पुन्नचुन्नमहिमा वसीकओ निच्चभिच्चो हं ॥ १०६३॥ किंच - सो चेव ताव अहमो, जो खलु देहि त्ति जंप कवि । जो पुण नहि त्ति जंपइ, तओ वि अहमाहमो एसो ||१०६४ || तत्तो अहं तुमं पइ, किं पि हु पत्थेमि जइ तुमं भसि । कुमरो जंपइ साहस, तुह कज्जं इह मए कज्जं ॥१०६५ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only ८३ www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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