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रोहिणीकहा
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सत्तय-नवगं अट्ठ य, नवगं सत्तेव अट्ठ छच्चेव । सत्त-पण-छक्क-चउरो, पण-तिग-चउरो द्गं तिन्नि ॥१००४॥ इग-दुग-एगं खमणा, चउपन्नसयं मुणिज्ज खमणाणं । पारणया तित्तीसं इय लयमाणा लया चउरो ॥१००५।। विगइजयं निव्वीय, निल्लेवं तह य हवइ आयाम । एवं कमेण कुज्जा, पारणया इत्थ लइयासु ॥१००६।। अडवीसाहिय दोन्नि य, वासा इह हवइ दिवसपरिमाणं । कम्मकरिदारणसहं, लहसीहनिकीलियं एयं ॥१००७॥ तह गरुसीहनिकीलिय-तवम्मि समयाणसारओ नेयं । कणगावलि-रयणावलि-मुत्तावलि-सव्वभद्दाइ ॥१००८॥ गुरु(ण) रयणवच्छरो वि य, विहियतवा दुक्खदावजलवाहा । अन्ने वि समयभणिया, नायव्वा इत्थ सयमेव ॥१००९॥ सोऊण इमं एसा, पडिवज्जइ केवलिस्स पासम्मि । उज्जुत्ता पुव्वुत्तं, सम्मं सव्वंपि तवनिवहं ॥१०१०॥ केवलिपन्नत्तेणं, विहिणा उव्वहइ आणपव्वीए । वेरग्गवासियमणा, सव्वतवे निच्चमुज्जुत्ता ॥१०११॥ तिस्सा उज्जमणविहि, सिद्धत्थो कणइ वइयबहअत्थो । अहवा तवोनिहीणं, देवावि कुणंति साहिज्जं ॥१०१२।। मणि-रयण-कणय-धण-कणवत्थप्पमुहाइवत्थुवित्थारा । उज्जमणेसुं तिस्साववकलिया तेण गुणनिहिणा ॥१०१३॥ तिस्सा तवनिवहं तं, विहसियवयणो पसंसए एसो । अणुमोयणाए तत्तो, आवज्जइ पुन्नपब्भारं ॥१०१३॥ जह जह कुणइ तवं सा, दढपइन्ना अणन्नसामन्नं । सरमिव गिम्हे तह तह, सूसइ से पावपत्थारी ॥१०१४।। दीसइ न चेव तिस्सा, देहे रस-मस-सोणियप्पमह। अइपयडा पुण कित्ती, न माइ से तिहुयणे सयले ॥१०१५॥
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