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सम्मत्त-बीय-संभो णाम पढमो अवसरो तत्थ य धनदेवकहाणगे सरस्सईपुव्वभवे हंसप्पहाकहा
तं वज्जपडण-दुसहं वयणं जक्खस्स अंतीए सोऊण । भयवस-वेविरदेहाए दीणवयणाए संलवियं ॥३७९।। भयवं ! सुरनर-संथुइय ! सचराचरजीव-वच्छ ल पसंत ! दयरसिय ! प सिय सिग्छ, खमेसु ज मेऽवरद्धं ति ।। को हसइ जाणमाणो, तुह चरियं चंदचंदिमा सरिसं । जो पुण अयाणमाणो हसइ हओ सो सकम्महि ।।३८१॥ अण्णाणं अवरज्झइ न भाव-दोसो जहित्य मणिपवर ! तह होज्ज साणकपो करुणायर मह तुम चेव ।।३८२।। तव्वयणायण्णण-सुप्पसण्ण-चित्तेण तेण जक्खेण । पडिभणिया सा वाला वच्च तुमं धीवर-कुलम्मि ।३८३। तत्थ वि सुहिया सोहग्ग-संजया जणिय-जणमणाणंदा । इमिणा चेव भवेणं सावंतं पुत्ति ! पाविहिसि ।।३८४।। इय वोत्तं तह सविया जह सा धीवरकुलम्मि अवयरिया। गंतूण सहीहि तओ पसाहियं जणि-जणयाणं।३८५। सोऊण इमं वयण अम्मा-पियराण सोग-भरियाण । घण-घडिय-मयंक-समप्पहाणि वधणाणि जायाणि ।।३८६।। भणियं च महीवइणा पज्जत्तं देवि ! गरु-विसाएण । वामाउ वि वामयरं कुणइ विही तत्थ को खेओ? ।।३८७।।
एवं संठविऊण अत्ताणयं ठियाणि ताणि सा वि कण्णगा अकम्हा चेव दिट्ठा एगेण धीवरजवाणएण । सर्याणज्जगया, पुच्छिया ससंभमेण-"को तुम? कत्तो वा समागया ?" सा वि बाहुल्ल-लोयणा रुयइ चेव न कि पि जपेइ।
तओ भणिया तेण सया सण्णिहिया गंधिला नाम नियदासी-"तह कह वि पण्णवेसू एयं जहा नियवुत्तंतं साहेइ ममं च पइं पडिबज्जइ । तीय वि तहेव ओयरिऊण बहप्पयारं सपणयं पूच्छिया । कहिओ हंसप्पहाए जहावट्टिओ सव्वो दइयरो । पडिपूच्छिया य गंधिला-"तुम पि कहेसु का एसा महावगा? का वा एसा महाडवी? को वा एस आयार-सुणिज्जंत-महाकुल-संभवो धीवर-जवाणो ।" ताए भणियं-"सूणेउ सावहाणा पियसही।" अणवरय-विगलंतामलबहल-मय-सलिल-लोलालि-पडलारावण-संजाय-भूरि-संरंभ-करि-नियर-कराकरिसण-भज्जत-तुंग-तरु-विसर-विगलंत-रस- कसा. इय-जलपूर-पूरिओभय-तडासण्णवियसिय-वउल-तिलय-कूरबय-कणियार-अइमत्तय-सहयार-संदोह-सूरहि-कुसुम-गंध-लुद्ध-भमतकिन्नर-विलासिणी . . चिर-सेविय-परिसर-लया-हरा, हर-हास-धवल-निय-जुयइ-चाडु-कम्म-करण-पवर-हंस-रहंगपमुह-विविह-विहंग-गणोवसेविया, विझगिरिविणिग्गया, सयल-जण-सम्मया नम्मया नामसा महाणई । जा वासुदेववच्छत्थली व निम्मल-कमलाकर-विराइया, रामायणकह व्व राम-लक्खण-पयार-रेहिरा एसा पुण विझाडवी । जो महापुरवरि व्व समंतओ विसालोवगूढा पहाणवंसाइण्णा बहुवालिया य, महानरिंद-रण-भूमि व्व दीसंताणेगसकुंतसरचक्कवाया खग्गाभिघाय-दलिज्जत-मत्त-मायंग-कुंभत्थला य, निसिसमय-महाराय-सभाभूमि व्व दीवियासयसोहिया बहु-कवि-संगया य, अग्गिहोत्तिय-चुल्लि व अणवरय-दझंत-कट्ट -संघाय-जलण-जाला-जोग-फुटुंत-महुयाल-गलंतमहु-बिंदु-संदोह-हुव्वंतहुयासणा य, चंडालजणावाणय-भूमि व्व वियरंत-मत्तमायंगा पयड-पलासा य, लंकाउरि व्व वियरंत-बहुनिसायरा विभीसण-संगया य, पंडव-सह व्व वियरंत-जुहिट्ठिल-भीम-अज्जुण-नउला सहदेवोवसोहिया य, लीलापहाणविलासिणि व्व विसट्ट- केलि-कमल-पगलत-मयरंद-बिंदु-पवाह-पिजरिज्जंत-पओहर-वर-तिलय-विभूसिया य, कत्थइ नयल-सिरि व्व वियरंत-धणहत्थ-लोद्धया सूक्कगयसिरसणाहा य, कत्थइ जेट्टक्कमूलकलिया सुचित्ताणुगया य, कत्थइ भद्दवय-सहिया उदिता विसाह-पयड-दीसंतमंदारा य, कत्थइ वियरंत-बह-रिक्ख-रेहिरा रोहिणी-रमणीया य, कत्थइ सत्तसत्तम-महरिसि-संचार-साहिया पयड-दीसंत-मयरा य, कत्थइ वियरंत-धुवागत्थिया कत्तियाणुगय-निसायर. संगया य, एसो पुण इमस्स चेव नम्मयोवगंठ-संठियस्स वसंतसुंदर-गामस्स सामिओ सूरविक्कमो नाम धीवरा हिवई । हंसप्पहाए भणियं-“कहं रायसूयसूयगाणि इमस्स लक्खणाणि?" तीए भणियं-"सूठ नायं पियसहीए । सो एसो हि कलिंगाहिस्स सीहक्किमराइणो पुत्तो। कोउहलेण करिकलह-गहणत्थमागओ, अओ तओ परियडतो य पत्तो वसंतसुंदरगामं । बाहिरियाए रायतणओ समागओ त्ति, सोऊण निग्गओ जलमुहो धीवराहिवई । सगोरवं पवेसिओ, तेण गाम मज्झे उवायणी काऊण मुत्ताहल-रयणमाईणि विसज्जिओ। गओ निययावासं ।
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