________________
सम्मत्त-बीय-लंभो णाम पढमो अवसरो तत्थ य धणदेवकहाणगे वसतिदाने सोमसेट्ठीकहा
भणियं--"कहिं सो संपयं वट्टइ ?" तेण भणियं--"नियघरे।" गया साहू। दिट्ठो भिल्लाहिवो । वंदिऊण पुच्छिया तेण समागमणपओयणं । साहहिं भणियं--"जइ भणह साहवो एत्थेव वासारत्तं कुणंति ।" तेण भणियं-"को विरोहो?" तओ साहवो गाममज्झे वसहिं गवेसिउमारद्धा। न लद्धा कत्थवि। कमेण भमंता गया सोमसेट्टिमंदिरं। भद्दगत्तणओ वंदिऊण पुच्छिया सोमेण-“कओ तुब्भे ? किं-निमित्तं वा गाममज्झे पडियडह ?" तेहिं भणियं-"सुपइट्ठनयराओ सत्थेण समं पुव्वदेसं पइ पत्थिया अइजलेण गंतुमचयंता सीमंधराहिहाणा सूरिणो बाहिं चिट्ठति । इच्छंति य इहेव वासारत्तं काउं। तव्वयणेण वसहि मग्गामो। जइ अत्थि तो देउ देवाणुप्पिओ !" दंसिया सोमेण नियघरसमासण्णा एगा कुडी। पडिलेहिया साहूहिं। समागया सूरिणो। वंदिया सपरिवारेण सोमेण । कया तक्कालोचिया धम्म-देसणा। समप्पण्णो भद्दगभावो सेट्ठि-परियणस्स। भणिओ सूरिणा सेट्ठी-"जइ कह वि पओयणवसेण साहुणो तणं वा कळं वा डगलं वा भूई वा मल्लगं वा गिण्हंति तं तए अणुजाणि[य]व्वं ।" तेण भणियं--"अणुग्गहो ममेसो"। पुणो वि कया आगमाणुसारेण सूरिहिं सेट्ठिणो धम्म-देसणा--- न य जोइसं न गणियं न अक्खरा न वि य किंपि साहेमो। अप्पत्थामा अ सुणगा भायणथंभोवमा वसिमो।।३३०॥ पडिउवयारो धम्मो न हु अण्णो कोइ साहुपासाओ । जइ एवं भणह तुम ता वसिमो अण्णहा नेव ।।३३१।।
सेट्टिणा भणियं-- “एवं पि वसह । अणुग्गहो मे।"
तओ ठिया। पारद्धा साहूहिं नाणाविहा तवाभिग्गह-विसेसा । अप्पेगइया चउत्थभत्तिया, अप्पेगइया छट्ठ-भत्तिया अप्पेगइया दुवालसभत्तिया, अप्पेगइया अद्धमास-खवगा, अप्पेगइया मास-खवगा, अप्पेगइया दुमास-खवगा, अप्पेगइया तिमास-खवगा, अप्पेगइया चउमास-खवगा, अप्पेगइया दव्वाइचउव्विहाभिग्गह-वरगा, अप्पेगइया वीरासण-टाणट्ठाइया, अप्पेगइया उक्कुड्यासणिया, अप्पेगइया लगंडसाइणो, अप्पेगइया अंबर-खुज्जट्टाणठाइणो अप्पेगइया ईसिंपन्भारगयगया; अण्णे पुण सुण्णहरसुसाणाइठाणेसु काउसग्गकारिणो, अण्णे सुविसुद्ध-धम्मज्झाणझाइणो, तहा केइ चोद्दसपुव्वधारिणो, अण्णे पुण एक्कारसंग-बेइणो, एवं ताण विविह-तव-नियम-ठाण-काउस्सग्ग-करण-निरयाणं दसविहसाह-समायारि परिपालयंताणं बच्चइ वासारत्तो। जाओ सह परियणेण परमसम्मदिट्ठी सोमसेट्ठी।
___अण्णम्मि दिणे सविसेसुल्लसिय-जीववीरिएण विसुद्धराय-वंस-संभवेण पुरंदरनामधेय-मुणिकुमारेण विण्णत्ता सूरिणो-“भणह तो हं गच्छाओ विणिक्खमिय ठाणमोणाइयं विसेसाणट्राणं अणचिद्रामि।" सूरिणा भणियं-न संगयमेयं।" जओ-पडिसिद्धो सविसेसकारणं विणा भगवया एगल्लविहारो बहुदोससंभवाओ, जेण इत्थीयणपडिणीय-पमुहेहिं पए-पए दोसेहिं दूसिओ संतो एगागी लाघवं लभे। जओ जओ वि एगागी, निदिज्जइ दुज्जणे जणे । गुणवंतगुणवंतो वि गच्छवासी भवे भवे ॥३३२।। गच्छेण सारिओ संतो, साहु साहु त्ति मण्णइ। ईसि सा सिज्झमाणा वि दुम्मई दुम्मई मणे ॥३३३॥ एस गच्छो महाभागो, महाभागनिसेविओ । साहू साहिति कल्लाणं, कल्लाणं एत्थ संठिया ॥३३४।। गुणरयणागरो जेसिं, गच्छवासो पिओ पिओ। संजमो संजमो तेसि, सुकरो सुकरो सया ॥३३५।। संसारं संसरंताण संसरताणमुत्तमं । गुणगच्छाओ गच्छाओ निग्गमे रमई रमे ।।३३६।। नाण-दसण-चरणेहि, संगया संगया गणे । पराहीणा पराहीणा सया हुँति सुसाहुणो ॥३३७॥ जेसिं चायं गणे वासो सज्जणाणुमओ मओ । दुहा वाराहियं तेहिं निम्विकप्पसुहं सुहं ॥३३८॥ जं इमं साहुसंसरिंग न विमोक्खसि मोक्खसि । उज्जओ य तवे निच्च न होहिसि न होहिसि ॥३३९।। सच्छंदवत्तिया जेहि सग्गुणेहि जढा जढा । अप्पणो ते परेसिं च निच्च सुविहिया हिया ॥३४०॥ नवधम्मस्स हि पाएण धम्मे न रमई मई । वहए सोवि संजुत्तो गोरिवाविधुरं धुरं ॥३४१।। एगागिस्स हि चित्ताइ विचित्ताई खणे खणे । उप्पज्जति वियंते य वसेवं सज्जणे जणे ॥३४२।।
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org