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सम्मत्त-बीय-लंभो णाम पढमो अवसरो तत्थ य धणदेवकहाणए दाणादिधम्मोवएसो
मोक्खपसाहणहेऊ, नाणाईतप्पसाहणो देहो । देहट्ठा आहारो, निद्दिट्ठो वीयरागेहिं ॥२५९।। पुरिसत्थेसु य पवरो, धम्मो धम्मत्थिणाउ सो गेज्झो। धम्मो वि देह-पभवो, देहो विहु वहइ अण्णेण । तो असण-पाण-खाइम-साइम-दाणाइं दितओ पुरिसो। पावइ परमं पुण्णं अव्वोच्छित्ति कुणइ तित्थे ।।२६१।। संपइ सील तं पुण देस-सव्व-विरइ-भेएण दुविहभेयं । तत्थ देस-विरई पुव्वमेव सुगुरु-समीवे मिच्छ्त्ताओ
पसम-संवेग-निव्वेयाणकंपाअस्थिक्काइलक्खणं सम्मत्तं पडिवणाण दीणाणाह-लोइय-लोउत्तरिय-गरु-जणपमह-जणो[चियपवित्ति] जुत्ताणं, समुदारमाणसाणं, परमपरोवयार-निरयाणं, पाव-दूगंछा-पवित्त-चित्ताणं, तहाविह कम्मक्खओवसमओ चेव निम्मलबोहाणं, सयलजण-वल्लहाणं, विगयगरुय-विसयतण्हाणं, दुरंत-दसणमोहपरिवज्जियाणं, पण?-धम्म-पच्छारुईणं, साणुबंध-कोहोदयाइविरहियाणं, परमसुस्सूसाइगुणगण-संगयाणं, निरुवम-धम्माणुरायरंजियमाणसाणं, चरणावरण-कम्मोदएण सविरइविमुहाणं थुलगपाणाइवाय-विरमणाईया दुवालस-भेयभिण्णा । सव्यविरई पुण विसिट्ठ-जाइकुलकलियाणं, खीणपाय-कम्ममलाणं, तत्तो चेव विमलमइसंगयाणं, संसारसुह-विरत्तचित्ताणं, पयईए चेव अप्पकसायाणं, विणयाइगुणगण-रयण-विभूसिय-सरीराणं समय-पसिद्धत्तर-गण-समन्नियाणं पंचमहव्वय-परिपालणरूवा ।
संपइ तगे भण्णइ-सो पुण महासत्तसंगएहि, इहलोइय-सुह-निप्पिवारोहिं, निरुद्ध-पंचिदियपसरेहि, नियसरीरे वि परिहरियममत्तेहिं, सद्दाइ-विसय-विरत्त-चित्तेहिं, [सरीरपीडासंभवे वि] अविसाईहिं पवट्टमाणसुहपरिणामेहि, अणसणाइदुवालसविहो-साहु-सावएहि अणुट्ठिज्जइ ।
इण्हि भावणामयधम्मो-सो पुण नाण-दसण-चरणायरण-निरयाणसाहुजणाणं, सावय-सावियाण य गुण-बहुमाणलक्खणो, संसार-दुगुंछणया सुहासुह-कम्म-विवागे गहण-भत्ति चितणाइभेया । एस चउदिवहो वि धम्मो [कह कह वि] पवरपुण्णोदएण पाणिणा पाविज्जइ । चंदणवाला, सिरिदत्तसेवगो, देवदिण्णसोमो य । नायाइं जहा-संखं, असणोसह-वत्थ-वसहीसु सीलम्मि। सीलवई साहसमल्लो य होइ तव-चरणे । सुद्धाए भावणाए दिळंतो चंदणा चेव ।। २६३ ।। तत्थासणाइदाणफलं भण्णइचंदनबालादिळंतो
अस्थि इहेव जंबद्दीव-दीवे भारहे वासे वच्छा-जणवए बहदिवस-वण्णणिज्जा कोसंबीनामनयरी । तीए निद्दलिय-दरियारिदप्प-माहप्पो, पयड-परक्कंत-सयल-महिमंडलो, सेवासमागयपविसंत-नीहरंताणेग-सामंत-संदोह-संरुद्धराय-दुवारमग्गो, विझगिरि-सिहर-समुत्तुंग-मत्त-मयगल-घडा-गंडयल-गलंतमयजलासार-संसित्त-धरणीयलो, तुरय-खरक्ख रुक्ख]णिय-खोणीवलय-समच्छलिय-रेणनियरंधारिय-सयल-नहयलाभोगो, चाउग्घंट-सहाल-सवण-संघाय-घण-घणाराव-बहि रिय-जण-सवणंतरो, पलयकाल-वित्थरिय-जलहि-जल-विउलण-पायत्ताणीओ, सयाणिओ नाम राया । तस्स सयलंतेउरप्पहाणा अहिगय-जीवाइतत्त-वित्थरा मेरु व्व निच्चल-सम्मत-गुणा चेटय-दुहिया मियावई नाम महादेवी । सुगुत्तो अमच्चो । नंदा से भारिया परमसाविया । सा पुण साहम्मिणि ति काऊण मियावईए वयंसिया ।
अत्थेत्थेव तच्चावाई नाम धम्मसत्थपाढगो । अण्णो वि तम्मि गुणगणावज्जिय-सयल-नायर-जणो, परितुदनरवइ-विइण्ण-सुवण्ण-पट्टसमलंकिय-भालयलो, सयलजण-माणणिज्जो धणावहो नाम सेट्ठी परिवसइ । मुला से भारिया। एवं ताण सकम्म-संपउत्ताण वच्चंति वासरा ।
- अण्णया य अतुलबल-परक्कमक्कतागधोरुवसग्गो, सचराचर-जीव-निक्कारण-बंधवो, संसार-सागर-निमज्जतजंतुगण-समुत्तारण-समत्थो, बोहित्थोवमो छउमत्थकालियाए गामाणुगामं विहरंतो संपत्तो तत्थ चरमतित्थयरो । गहिओ भगवया पोसबहुल-पाडिवए दव्वाइ चउविहो अभिग्गहो ।--"दब्वओ कुम्मासे सुप्प-कोण-कए जइ लहामि । खेत्तओ इमीए चेव नयरीए एलगं विक्खंभइत्ता । कालओ पडिनिय[त्तेस्] सयल-भिक्खायरेसु । भावओ रायहिया दासत्तणं
पाता
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