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सम्मत्त-बीय-लंभो णाम पढमो अवसरो तत्थ य धनदेवकहाणगे अमयमुहाथेरीदिद्रुतो
पडिवणं तेहि, दिवा अमयमहाथेरी । ते तदंतियं पणया थेरी। आसीसपुरस्सरं संभासिआ कोमलवयणेहिं पुच्छिया य कि निमित्तं बच्छा] समागया?" तेहि भणियं--"अम्मो! सिसिरगिम्ह-वासारत्ताण [मज्झे] को सलहिज्जइ ?" तीए भणियं-“तिण्णि वि सलाहणिज्जाओ।
सिसिरि सुयंधु-तेल्लु-लाइज्जइ । कुंकुमि-अंगरागु-निरु किज्जइ ।। रुइ आहारि समग्गल वट्टइ । निहु (धु)वि भोयणु सोसु न कड्डइ ।। अच्छा चंदण, अच्छा कप्पड । पाथ-पसारिवि सुप्पइ चप्पड ।। गिम्हु वि विविह-वणेहिं समाउलु ।वर हिंदोलय-रास-रमाउल ।। पाउसु पुत्तय ! पुण्णिहि लब्भइ। मेइणि सुव्वहु निथ जलि गभइ।
वाइ रेलु थ यव (तूर) रमाउलु । पमुइथ-पामर-कय-कोलाहलु ।।२१८।।' तओ तिण्णि वि परितुद्वा भणिया तेहिं थेरी--"अम्मो ! इमं घडयं मोयग-भरियं पइदिणं पेक्खिहिसि।" एवं भणिऊण गया ते सट्ठाणं । सा वि पइदिणं मोयगे भुंजती कालं गमेइ।।
अण्णया चिंतियं वहुए ---"जइ तीए मयसद्दो सुणिज्जइ तो निव्वुयं हवइ मे माणसं ।" भणिओ नागदत्तो"अज्जउत्त ! न अंबाए पउत्ति लहेहि ? कहं सा चिाह?" गओ सो। दिदा जणणी संदर प्रत्त-सिणेहो । भोयाविओ परममोयगेहिं । पडिनियत्तमाणस्स संबल-निमित्तं समप्पिया मोयगा । पत्तो नियधर नागदत्तो। पुच्छिओ नागसिरीए--"कहं अम्मा चिट्ठइ? कहं प जइ ?" साहिओ तेण सव्वो वि वइयरो। दंसिया मोयगा । कसाइया नागसिरी । भणिओ नागदत्तो--"मह जणणी तत्थ मेलेहि । निय जणणीं एत्थ आणेहि।" तहेव कयं तेण । पुणो वि समुप्पण्णो तिण्ह वि रिउ-देवाण विसंवाओ । भणियं सिसिरेण पूणो-"अन्नं कि पि पूच्छामो ?" आगच्छमाणेहि दिट्टा [सा] कडयमहा । 'अपुव्व' त्ति, काऊण पुच्छ्यिा --"अम्मो! सिसिर-गिम्ह-वासारत्ताण को रमणिज्जो ?" तीए भणियं--“तिण्णि वि असोहणा। जओ--
सीयलवाइं वाजई दांत । सांकुडियई पावियहिं निसात ॥ सीयालइ सिइं दज्झहिं चाम । छेहिं न चडइ जु कीजइ काम ।। .... खणि-खणि पीजइ उण्हउंपाणि उ । नइ-दह-कूव-तलावहं आणि उ ।। ताविल्लई दहइ जु देहु । तसु उण्हाला नाउं म लेहु ।। हे?इ कादउ घरि पाणिउ । पइ-पइ कुहियउ आवहिं थाणि ।।
पाउस परह उ फिट्टउ वा रह । जोअणु रइ कुहिय चमारह (?) ॥२१९।।" एयं सुणिय तिहिं वि रुट्ठा हिंसविया उवहय-सवण-नयण-वावारा दुक्खेण चिट्ठइ ।
कइवयदिणावसाणे भणिओ नागदत्तो नागसिरीए--"मह जणणीए सारं पि न करेसि ?" तेण भणियं--'करेमि" गओ सो [त]म्मि ठाणे दिट्ठा तहाविहा थेरी । विम्हयमावण्णण तेण आपूच्छिया तत्थेव संपिडिया कप्पडियतडियादओ । भणिय मेगेण--“[दिट्ठा मए सा पुरिसतिएण] सिसिराइसरूवं पुच्छिज्जती तिण्ह वि निंदण-परायणा रूसिऊण तेहि पण?-वयण-सवणा चेव कया।" नागदत्तण चितियं-'निय नाम-सरिसं कूणंतीए दुहविया केइ दिव्वपूरिसा इमाए तेण एवंविहा जाय ति चितिऊण] गहिऊण गओ स-नगरं । - [पविठ्ठो गिह। पुच्छिओ घरिणीए--"कहमेवंविहमवत्थंतरं पाविआ [मे] अंबा?" तेण भणियं--"नियतुंड-फलमेयं ।" साहिओ सव्वो वि वइयरो । तं सोऊण ठिया सा लज्जाए अहोमुही । तप्परिपालणपरायणा किलेसेण कालं गमेइ । एवं महुर-वयणेण पढमथेरी सुह-परंपरं पाविया। इयरी पुण [दुवक्कदोसाओ] दुह-परंपरं । अओ महुरभासी सलाहणिज्जो त्ति मे मई।" ...
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