________________
सम्मत्त-बी-लंभो णाम पढमो अवसरो तत्थ य धनदेवकहाणगे पुण्णसारनिव कहा
गुणिणो वि होंति विगुणा, खलाण संगण नत्थि संदेहो । लोहाणुगओ धणियं घणघाए सहइ जलणो वि ।।१९२।
ता ता एयस्स सिक्ख करेहि जहा अई मुहरत्तणेण अण्णो न एवं पर्यपइ ।” निब्भच्छिऊण निठुरवयणाहि भणिओ कुमारेण केलिकंदो "अरे ! आजम्मं न तए दिट्टिगोयरे मह समागंतव्वं, एसेव ते दंडो ।” भणिऊण निद्धाडिओ ।
धणदेव-विणोयणत्थं पुच्छिया कुमारेण सुबुद्धिपमुहा नियवयंसया - " भी कहेह, पुण्णसार - महरभासि - दीहदरिसीण मझे को सलहिज्ज ?" धणदेवेण चितियं" सोहणं पुच्छ्यिं भविस्सइ मणयं ममावि दुक्खवीसारो।" तओ सुबुद्धिणा भणियं — “पुण्णसारो सलहिज्जइ जं तस्साणिच्छंतस्सवि संपज्जति सयलसमीहियाई जहा पुण्णसारराइणो । कुमारेण भणिय - " को एस पुण्णसारो ?” सुबुद्धिणा भणियं-सुणउ कुमारो
३३
पुण्णसारनिव कहा :
अत्थि इह वर पुलिगपरियड ताणेगकुरव - कारंडव हंस- चक्कवाय मिहुणारव - बहिरिय दियंतरा परिणय-ग[यदंत]मुसल - विभिण्ण-तड-पडणाविल-जल-रंग-रंगत-हंस- मिहण- हारिणी वेणीव धरणी- रमणीए वेण्णा नाम महानई । तीसे य कूले रयणपुर - कणगपुर-रययपुर-नामाणि गंगराणि एक्केक्कजोय गंतराणि । सयल - नेगमप्पहाणी रयणउरे धनसार - सेट्ठी । सूरो व्व सव्वत्थ पसरिय-पयावो, जम्मंतरोवज्जिय-पडिपुण्णं पुण्ण- पभावेण संपंज्जत-सयल - समीहिओ कणगपुरे पुण्णसारो नाम राया। पंचह चट्टसयाणमज्झावओ नरनारी- लक्खण वियक्खणो रययपुरे सिवाणंदो नाम पंडरंगो परिवसइ ।
turer feariदो ओयणवसेण रयणपुरमागओ । निमंतिओ धनसारसेट्टिणा । भोयाविओ परमविणयेण संपूइओ पुप्फ- तंबोलाइणा निवडिओ सपरियणो सेट्ठी सिवानंदचलणासु । दिट्ठा तेण सयल-लक्खण-पडिपुण्णा संपूण्णा नाम धनसारसेट्टिणो धूया । पुच्छिया सिवाणंदेण-- "कस्सेसा परिग्गहे ?”. सेट्टिणा भणियं - "मह धूया ।" तओ चितिथं तेण 'सयल लक्खण-पsिyणा एसा । जइ कहवि परिणिज्जइ तो पविज्जइ नरिदत्तणं । ता विप्पयारेमि केणइ पयारेण इमाए जणणिजणयाणि । एवं विगप्पिऊण ईसि कंपाविय-कंधरो विवण्ण-वयणो होऊण जंपिउमाढत्तो - - " अहह !! महई अणत्थपरम्परा, पडिकूलो विही तुम्हाण कुलस्स ।" सेट्ठिणा भणियं - "केण ?" तेण भणियं--"विलक्खणा एसा कण्णया । जम्मि चेव दिवसे वर कर- गहणं करिस्सइ तम्मि चेव दिने अवस्संभावी तुम्हाण कुलक्खओ।" सेट्ठिणा भणियं -- भयवं ! जओ
दिणाओ एसा जाया तओ चेव अम्हाणं धण धण्ण-दुपय-चउप्पएहिं वुड्ढी जाया । कहमेयं ? सविसेसं निरूवेउ भयवं ! "खणमेत्तं निरूविऊण पुणो वि तेण तं चैव भणियं ! " " भयवं ! जइ गह पूयाइणा विग्घोवसमो भवइ ता तंपि करेमो ।" तेण भणियं -- " एयं पि न हवइ ।" सेट्टिणा भणियं -- "संकडमेयं, कहं नित्थरियव्वं ? " तेण भणियं -- " अत्थि एगो उवाओ ।" सेट्ठिणा भणियं—–“केरिसो ?” सिवाणंदेण भणियं -- "जमेसा सुहपसुत्ता चेव वरवत्थाहरण-विभूसिया मंजूसाए छूढे [ऊ ]ण नई वाज्जिह जो परिणिस्सइ तस्सेव कुलक्खओ, तुम्हाण पुण संती । एवं भणिऊण गओ सिवाणंदो सनगरं । भणियां सुभद्दा सेट्ठिा "पिए! अमोह-वयणो भयवं सिवाणंदो । विसायं मोतूण चितिज्जउ गुरुलाघवं । अप्प कारणं बहुं परिहरंतो वियारमूढो पाणी मुणिज्जइ । " पडिवण्णं सुभद्दाए सेट्ठिवयणं । कयमज्जणोवयारा विविहवत्थाहरण - विभूसिया निद्दावसपणटुचेयणा जणणि जगएहिं मंजूसाए छूढा संपूण्णा । दिष्णं तालयं । धरिया समीवे कुंचिया । पच्छन्नं नेऊण वेण्णा पवाहिया । जलरय-पणोल्लिया अणुसोयं वोढुमारद्धा मंजूसा । दुहिया - दुह-दुहिया निवडिया जणणी चित्तलिहिय व्व अचेया संवृत्ता कहवि लद्ध चेयणा एवं विलविउमारद्वा
"न घणसार- सहिय-वर घुसिणिहिं तुह मुहु चच्चियउं । न य नियकडिहिं करेविणु मई निरु नच्चिरं । नव-कंकण-कय-लंछणु पंकय - सोहहरु । वर- कर-कमल-परिदिट्टिउ दिट्ठू न तुज्झ करु । अवरोप्पर मुहपेक्खण- लज्जिरमंथरई । नीलुप्पल-दल-सरलई तरलई पहलई । धूमपाण-पगलंतई जणमण मोहणई । तुह मुहि पुत्ति न दिट्ठई अम्हहिं लोयणई ||
वह मुई मह मणु छुद्ध, मंदु झिय पारइ | धम्मविहूणिहि कवणु दुहु, जं न वि लब्भइ माणुसवाइ ॥
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org