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सिरि-वद्ध माणसूरि-विरइया
मणोरमा-कहा
(१. सम्मत-बीय-लंभो णाम पढमो अवसरो)
भीम-भव-भमण-संभंत-भव्वसत्ताणताण दुल्ललिओ। सरय-समुग्गथ-ससहर-जस-धवलियतिहुयणाभोगो॥१॥ नमिरामर-मोलि-किरीड-कोडि-संघट्ट-लट्ठ-पय-कमलो । परमप्पा पढमजिणो, परमपय-पइट्ठिओ जयइ ॥२॥ अज्ज वि जस्स विरायइ, सुपसिद्धं पवयणं गुणसमिद्धं । संसारजलहि-पडियाण जाणवत्तं व भवियाणं ।।३।। सो संगमय-महासुर-मुसुमूरिय-गरूय-दप्प-माहप्पो । वीरो मयण-महाभड-मय-महणो, दलउ दुरियाई ॥४।। अजियाइणो जिणिदे, जयपयडे पासनाह-पज्जते । सयल-सुरासुरनमिए, नमामि परमाए भत्तीए ।।५।। निविय-अट्ठकम्मे, जाइ-जरा-मरण-बंधण-विमुक्के। तेलोक्क-मत्थयत्थे, पणमह सिद्धे सुह-समिद्धे ।।६।। सुथ-रयण-साथ राणं, खीरासव-पमुह-लद्धिजुत्ताणं । पंचविहायारध राणं, पण मिमो गोयमाईणं ।।७।। उज्झिय संसार-पहे, सुत्त-पयाणेण तोसिय-विणए। आयरिय-ठाण-जोग्गे, वंदेऽहं पवर-उज्झाए ।।८।। विविह-तव-सोसियंगे, निस्संगे निम्ममे निरारंभे। सिद्धि-सुह-साहणरए, साहू सिरसा नमसामि ।।९।। जे मह-महग्घ-नाणाइ-रयण-तियगस्स कारणं गुरवो । ताण ति-संझ पि सया, पाए पयओ पणिवयामि ।।१०।। देवासुर-नर-किण्णरपरितुळुक्किट्ठि-सद्द-संवलिया। सव्वसभा-साणुगया, जिणवाणी वो सुहं दिसउ ।।११।। कर-धरिय-धवल-कमला, सारय-ससि-संख-कुंद-समवण्णा । सिय-वसण-भूसणधरा, सरस्सई जयइ जयपथडा ।। नंदंतु महाकइणो, सुललिय-पय-वण्ण-नास-सोहिल्ला। जाण पबंधा पवरा हरंति हिययं छइल्लाण ।।१३।। सरिमो सुयणाण सथा, गुणगहणपराण दोस-विमुहाण । जाण मुह-महोयहिणो, वयणं अमयं व पज्झरइ ।।१४।। छंदालंकार-विवज्जियं पि, जइ विरहियं वि विरसं पि । जे नियमइ विहवेणं, कुणंति कव्वं गुणग्घवियं ॥१५॥ अह भणसि अत्थि अण्णो वि, दुज्जणो दोस-गहण-तल्लिच्छो । सोऽणुणिज्जउ जेणेह, न कव्व-दोसे पयासेइ ।१६। गय-नेहो मुह-कडुओ, कसिण-गुणो भेय-कारओ धणियं । अमिएण वि सिंचंतो, खलो खलो चेव कि तेण?।।१७।। पिसुण-सुणयाण दोण्हं वि, दीसइ लोयम्मि अंतरं गरुयं। चिरपरिचिएसुन भसइ, सुणओ पिसुणो पुणो भसइ ।१८। दोजीहो कुडिलगई, बहि-लण्हो अंतरम्मि विस-भरिओ। परछिद्दाणुप्पेही, पिसुणजणो सप्प-सारिच्छो॥१९।। तिक्खमु हो लोहिल्लो, पर-मम्म-विघट्टणो गुण-विमुक्को । नाराओ विव पिसुणो, सम्मुहमित्तो वि भयकारी।२०। उल्लावंतेण न कस्स होइ पासथिएण थद्धेण । संकामसाण-पायव-लंबियचोरेण व खलेण ।।२१।। पच्छन्न-पडतर-संठिएण, खणदिट्ठनट्ठविलएण । पिसुणेण मंकुणेण व, को आढत्तो सुहं सुयइ ? ।।२२।। . कह कह वि कुणइ कव्वं, कई किलेसेण गुरुनिरोहेण। उस्सिखल-खल-लोओ, दूसइ तं वयणमेत्तेण ।।२३।।
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