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मणोरमा - कहा
जोव्वणा विपुरिसा बाल व्व समायरंति कम्माई । दुग्गइनिबंधणाई जोव्वणमंतो वि न हु केइ ||४८३ || वुड्ढसहावा तरुणत्तणे वि धण्णाण सुंदरी होइ । इयराणं पुण वुड्ढत्तणे वि निव्वss तारुण्णं ॥। ४८४ ।।
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नय विवेगिणो मुणियसंसार - रूवस्स इंदियाणि [अगो] वियाणि वि दुद्दमाणि ।
उप्पह-पत्थिय- इंदियतुरंग [मा] वि[व] दुद्दमा ताव । जाव न सुपुरिससा रही विवेय रज्जूए संजमिया ॥ ४८५।।
अणगोविय अणज्ज-संकष्प-मूलो [अहम्मो ? ] परिचत्तेहि पाविए तप्पडिवक्खे वीयराय-वयणो, उवलद्धे य समसुह-सवेवसंताण, गुरु-पाय-मले झोसयंताण, विविह्तव चरणेण अत्ताणयं निप्पsि - कम्मसरीराण कह पहवइ । जओ
गुरु-सेल- नियंब-पडित्थिरम्मि गरुयाण हिययसारम्मि । रे खुद्दायस निम्मविओ असि व्व कि काहिहि अणगो । किं वा मोहरतं विसयाणं ? पोग्गलपरिणामा इमे । पोग्गला पुण सुहा वि होऊण असुहा होंति, असुहा सुहा। किं च-
किंपाग-फलसरिच्छा सेविज्जंता मणोरमा विसया । परिणममाणा दुस्सह- दुग्गड पुरपावगा होंति ।।४८६।। किं बहुणा तायप्पभावाओ चेव मे सेअं भविस्सइ । तओ भणिया अमरगुत्तेण कंता - “पिए ! साहेउ समीहियं ते सुओ ।" पडिवण्णं तीए । पारद्धा निक्खमण सामग्गी । गओ अमरगुत्तो ।
अण्णम्मि दिणे सूरि-वंदणत्थं समं नागरेहिं वंदिया गुरुणो । निसुया संसय-सय- विच्छेयकारिणी धम्म- देसणा । नियरिद्धि-विहिय- माणसेण पुच्छिया सूरिणो । अमरगुत्तेण भणियं - 'भयवं ! मए केरिस जम्मंतरे दाणं दिण्णं सालं वा परिपालियं तवो वा अणुचरिओ भावणा वा भाविया जेणेरिसो सुहविवागो ?" सूरिणा भणियं - " सोम ! सुण - "
अत्थि इहेव जंबूद्दीवे दीवे संसार - जलहिनिमज्जत -सत्त- समुत्तारण-समत्थाणुत्तर - पुण्ण- पब्भार भरिय-सथलसत्त-संदोह-हिय [य-स]क्काइ [सक्कार ]-पूयारिहारिहंतावतार - समय-समुप्पण्णासण-कंप-संजाय-संकष्प-उत्त [प्पमप्पिअ] पसत्थविच्छिण्णावहि--समुवलद्ध-जिणगब्भाहाण-संजायासरिस - हरिस-वस-विसट्टंत वयणारविंद-वयण-समणंतर--हरिणेगमेसि - सुर-समा [ह]य-सुघोस-घंटा-पडिसद्द वज्जंत-बत्तीस विमाण-लक्ख-घंटा - रणरणाराव पडिबुद्ध - मत्त - पमत्त - वि[सया ] सत्तझडत्ति - सुर-समूहसेविय-सक्का गम जणिय जण - चमक्का रं, तहा - तित्थयर- जम्म-समय- समोकंपिय-सोहासण-संजाय-संक-दिण्णोवओग-मुणियजिण - जम्म-समय- समुल्लसंत-- हरिस - विसप्पमाण-माणसागय-छप्पण्ण-- दिसाकुमारि -समाढत्त - सूइ -कम्म-समारंभ-जणिय-जणबिम्हयं, तहा तिय- चउक्क- चच्चर - चउम्मुह- महापह-पुंजियाणेग-मणि रयण-कणय-कोडि रेहिर- वरवरियाघोसिज्जमाण-दालिद्दकंदुक्कंदण-सयल-जय-जीव--सुहहेउजिण निक्खमण-समय--समायरंत - चउब्विहसु [ र स ] मूहविमाण- पहा-समुज्जोइय-भुवणब्भंतरं, जिणिद-केवलि-महिमा -- करणागयासेस- सुर- सामि - विभूसिय-सुह- तित्थ-पवत्तण-समय- सुर-समारद्ध-सालत्तय-परिखित्त चेइ-तरुमणि-पेढ - सीहा सण - छत्त-त्तय-धय- चमर-सणाह - समोसरण सन्निसण्ण- भयवंत-समाढत्त-धम्म- देसणा-सवण-संजाय संवेग-भवविरत - सत्त-संदोह - साहियं, तहा तित्थयर-नेव्वाण -समय- समागच्छंताग-सुर - विमाण विलग्ग-मणि रयण-कर-करंबिय-नहाभोगभासुरं, निवयंतोप्पयंत सुरासुर - विसर - वियमाण- बंभंडोदरं, एवं पंचसु वि कल्लाण-परसु सयल- सुरासुर-संचारेण सग्ग- सारिच्छं जंबुद्दीव- भारह - मज्झिम -खंड - नाम खेत्तं । तत्थ य सद्धम्मासत्त- सत्त सेविओ कोसला नाम जणवओ ।
तम्मिय विसाल समुत्तुंग- मनोहर - जिण -हर- विसर - सिहरा रोविय-पवण - पहल्लिर-धवल-धयवड -- मालावरुद्ध नहंगणाभोगं बहुपुण्ण-जण सेवणिज्जं कोसंबं नाम नयरं । तम्मिय नागसेहर नाइत्तग-घरे आजम्म-दारिद्दिणीविहल-वंसा विजया नाम कम्मकरी तुममर्हसि । नत्थि तं कुकम्मं जं तुमं तया न करेसि ।
अण्णा चलिओ नागसेहर - नाइत्तगो मलयाभिमुहं जाणवत्तेण कम्मकरण-निमित्तं । चालिया तेण विजया | मुक्कं जाणवत्तं I नागकंत-नागगंधव्व-रवायड्ढिय दिण्णावहाणथिर-थिय- सारंग जह जणिय जण विम्हयं,
जलहि-तीर-तरु
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